देशी किस्म का बीज अपनाकर खेती को लाभकारी बनाएं: भारतीय किसान संघ

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बीज, पशुपालन और जैविक आयाम पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग का समापन

कोटा। भारतीय किसान संघ चित्तौड़ प्रांत के श्रीरामशांताय जैविक कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र कैथून रोड़ जाखोड़ा पर बीज, पशुपालन और जैविक आयाम पर चल रहे तीन दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग का रविवार को समापन हुआ।

इस दौरान विशेषज्ञों ने खेती को लाभकारी बनाने के मंत्र दिए। देशी, उन्नत और परंपरागत बीजों के संरक्षण, उत्पादन व संवर्धन पर कार्य करने वाले विशेषज्ञों ने देशी बीज का महत्व समझाया। सेमिनार के एक सत्र को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय बीज प्रमुख कृष्णमुरारी ने कहा कि बीजों की देशी किस्में खेती को अधिक लाभकारी बनाती हैं।

देशी किस्म में कीट का प्रकोप कम होता है। देशी किस्म के बीज सस्ते भी होते हैं और इन्हें कईं वर्षों तक संरक्षित कर उपयोग में लिया जा सकता है। वहीं संकर बीज महंगे होते हैं और इनकी बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बहुत कम होती है।

प्रान्त बीज प्रमुख डॉ. राजेन्द्र बाबू दुबे ने कहा कि कई पीढ़ियों से खेती में प्रयुक्त किए जाने वाले पारंपरिक बीज भारतीय कृषि की आत्मा है। यद्यपि रासायनिक उर्वरकों और संकर बीजों का उपयोग करके हरित क्रांति का प्रयोग सफल रहा है, मानव शरीर पर इन खाद्य पदार्थों का प्रभाव पारंपरिक स्वदेशी है।

इसलिए, पारंपरिक स्वदेशी बीज किस्मों को संरक्षित और खेती करना आवश्यक है। उन्होंने स्थानीय किस्मों का संरक्षण कर इसकी शुद्धता कैसे बढ़ाई जाए और अन्य किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए कम लागत पर खेती कैसे की जाए, इस पर मार्गदर्शन दिया।

डॉ. पवन टांक ने कहा कि बीज की देशी किस्म स्थानीय जलवायु के अनुरूप होती हैं। हमारे पूर्वज देशी किस्म के बीज उगाकर भी लाभकारी खेती करते थे। प्रदेश जैविक प्रमुख प्रह्लाद नागर, प्रान्त बीज प्रमुख बाबूसिंह रावत और प्रान्त संगठन मंत्री परमानन्द ने जैव विविधता और जलवायु का बीज पर प्रभाव, परंपरागत बीजों के लाभ, उत्पादन, संरक्षण, संग्रहण की विधि, फलदार पौधों का प्रवर्धन, परंपरागत बीजों में जैविक विधि से कीट नियंत्रण, बीजों पर परंपरागत और वैज्ञानिक चिंतन, बीज बैंक जैसे विषयों पर प्रकाश डाला।