बजट सत्र कल से, विपक्ष कृषि कानूनों पर राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करेगा

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नई दिल्ली। सरकार और विपक्ष के बीच कृषि कानूनों पर फिर से तीखी नोकझोक होने के संकेत मिल रहे हैं। कांग्रेस नेता गुलामनबी आजाद ने कहा है कि 16 राजनीतिक पार्टियां कल बजट सत्र से पहले राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करेंगी। उनका कहना है कि इसकी प्रमुख वजह तीन कृषि कानूनों को संसद से जबरन पास कराया जाना है।

भारत सरकार ने पिछले साल सितंबर में तीन कृषि कानूनों को लागू किया था। इन्हें कृषि क्षेत्र में बड़े सुधारों के रूप में पेश किया गया है, जो बिचौलियों को दूर करेगा और किसानों को देश में कहीं भी अपनी उपज बेचने की आजादी देगा। राज्यसभा में विपक्ष के हंगामे के बीच मोदी सरकार ने ध्वनिमत से कृषि बिल पास कराया था। इस दौरान सांसदों ने सदन में जबरदस्त उत्पात मचाया। टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने रुल बुक फाड़ दी, तो वहीं कुछ सांसदों ने उपसभापति का माइक तोड़ने की कोशिश की। हंगामा इतना जोरदार था कि सदन की कार्यवाही 10 मिनट के लिए रोकनी पड़ी थी।

उसके बाद से देशभर में बिल को लेकर लगातार विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। प्रधानमंत्री ने बिल को किसानों के लिए हितकारी बताया. लेकिन कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों का कहना है कि ये कानून किसानों को निजी कंपनियों का गुलाम बना देंगे। पहले किसानों ने पंजाब में धरना प्रदर्शन किए और उसके बाद वे दिल्ली के बार्डर पर आकर बैठ गए।

उधर, भाजपा का कहना है कि इससे फसल की कीमत ज्यादा होगी। साथ ही आवश्यक वस्तु विधेयक के तहत प्याज, आलू, फल सस्ते होंगे। वहीं एपीएमसी एक्ट के तहत इस बिल के पास होने के बाद ये प्रावधान लागू हो जाएगा कि देशभर में फसल की बिक्री होगी, जो किसानों के लिए हितकारी होगा। इसके अलावा ठेके पर खेती बिल से कांट्रेक्ट फॉर्मिंग को बढ़ावा मिलेगा।

कृषि कानूनों को लेकर विदेशों में भी हलचल देखने को मिली है। आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा कि भारत में हाल में लागू कृषि कानूनों में किसानों की आय बढ़ाने की क्षमता है, लेकिन साथ ही कमजोर किसानों को सामाजिक सुरक्षा देने की जरूरत है। गोपीनाथ ने कहा कि ये कृषि कानून खासतौर से विपणन क्षेत्र से संबंधित हैं। इनसे किसानों के लिए बाजार बड़ा हो रहा है। अब वे बिना कर चुकाए मंडियों के अलावा कई स्थानों पर भी अपनी पैदावार बेच सकेंगे।