पढ़ाई का कारोबार बढ़ाने के लिए ‘स्टडी इन इंडिया’ पर जोर

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नई दिल्ली। युगांडा के जॉन पैट्रिक ऑमेजियर 5 वर्षों से पुणे में रह रहे हैं। 25 वर्षीय ऑमेजियर ने कॉमर्स में बैचलर डिग्री ली है और अब मास्टर डिग्री के लिए सिंबिओसिस सेंटर फॉर इंटरनैशनल एजुकेशन में दाखिला लिया है। उन्हें पढ़ाई का पूरा खर्च स्कॉलरशिप से प्राप्त हो रहा है। उन्हें पुणे से प्यार है क्योंकि इस शहर की फिजा सबकी इज्जत करने की भावना से सराबोर है। पुणे में विदेशी विद्यार्थियों के प्रति सहिष्णुता की संस्कृति रची-बसी है।

सूचना तकनीक के केंद्र के रूप में पुणे का विकास और कई संपन्न पारंपरिक कारोबारी घरानों की मौजूदगी के कारण यह शहर ऑमेजियर जैसे कई विदेशी विद्यार्थियों के आकर्षण का केंद्र बन चुका है। उन्हें यहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ इंटर्नशिप करने का भी मौका मिलता है। लेकिन, वीजा नियम उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के बाद भारत में नौकरी करने की अनुमति नहीं देता है।

विदेशियों को प्यार देता है पुणे
सिंबिओसिस सेंटर फॉर इंटरनैशनल एजुकेशन की डेप्युटी डायरेक्टर अनिता पाटनकर कहती हैं कि विदेशी विद्यार्थियों को आकर्षित करने के मुख्य लक्ष्य के साथ सिंबिओसिस इंटरनैशनल की स्थापना चार दशक पहले हुई थी। अब यहां करीब 80 देशों के दो हजार विदेशी विद्यार्थी हैं। उन्होंने बताया कि यहां विदेशियों के लिए कुछ आकर्षक पाठ्यक्रमों में आईटी, कंप्यूटर्स, नर्सिंग, हॉस्पिटल मैनेजमेंट, मेडिकल टेक्नॉलजी और बैचलर इन बिजनस ऐडमिनिस्ट्रेशन आदि शामिल हैं।

अप्रैल 2018 में स्टडी इन इंडिया का शुभारंभ
कोई संदेह नहीं कि भारत सरकार ने भी पुणे को अपने स्टडी इन इंडिया प्रोग्राम का केंद्र बनाया है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विदेश मंत्रालय ने ज्यादा-से-ज्यादा अंतरराष्ट्रीय छात्र/छात्राओं को आकर्षित करने के लिए पिछले साल अप्रैल में इस पहल का शुभारंभ किया था। इसके तहत एक पोर्टल लॉन्च किया गया जिससे देश के 160 से ज्यादा उच्च शिक्षा संस्थानों को जोड़ा गया।

इन संस्थानों में निजी एवं सरकारी, दोनों तरह से शैक्षिक संस्थान शामिल हैं। इनमें आईआईटी; एनआईटी; मारवाड़ी यूनिवर्सिटी, राजकोट; केआईआईटी, भुवनेश्वर जैसे संस्थान हैं। इन संस्थानों में अंडरग्रेड, मास्टर्स और पीएचडी लेवल की 25 हजार सीटें विदेशी विद्यार्थियों के लिए सुरक्षित हैं।

लगातार प्रयास कर रही है सरकार
उन्होंने कहा, ‘फिर भी हमारी यूनिवर्सिटियों में भारतीय विद्यार्थियों की तुलना में विदेशी विद्यार्थियों की तादाद बहुत कम है। कैंपस में विविधता को विस्तार देने से भारतीय संस्थानों की ग्लोबल रैंकिंग्स में महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है।’ सरकार ने स्टडी इन इंडिया पोर्टल के अलावा इंटरनैशनल कॉल सेंटर भी स्थापित किया है जो विदेशी विद्यार्थियों को दाखिले से लेकर आगे की प्रक्रिया समझने-बूझने में मदद करता है। साथ ही, सरकार ने 30 लक्षित देशों में सोशल मीडिया कैंपेन भी चला रखा है। 2,500 से ज्यादा विदेशी विद्यार्थी काउंसलिंग सर्विस लेने के लिए पोर्टल पर साइन अप कर चुके हैं।

…ताकि विदेशी विद्यार्थियों का केंद्र बने भारत
दास ने कहा, ‘हम लक्षित देशों के लिए चयनित संस्थानों के साथ ज्यादा स्कॉलरशिप और शुल्क में छूट दिए जाने पर काम कर रहे हैं। वाणिज्य मंत्रालय शिक्षा सेवाओं में विदेशी मुद्रा लाने की बड़ी क्षमता का अहसास कर रहा है और हम विदेशी विद्यार्थियों को फिलहाल भारत के सॉफ्ट पावर को विदेशों में फैलाने का साधन मानते हैं। साथ ही, हमें उन विद्यार्थियों के अपने-अपने देशों में अपने देश (भारत) के ब्रैंड ऐंबैसडर की भूमिका निभाने का मौका मिल रहा है। हमें उम्मीद है कि बाद में विदेशी मुद्रा का प्रवाह कई गुना बढ़ जाएगा।’

आसान की जा रही हैं वीजा प्रक्रिया
EdCIL विदेशी विद्यार्थियों को भारत में शिक्षा प्राप्ति का रास्ता सुगम बनाने के लिए स्टूडेंट वीजा को सुलभ बना रही है। साथ ही सरकार का लक्ष्य है कि भविष्य में सामूहिक प्रवेश परीक्षा (कॉमन एंट्रेंस एग्जामिनेशन) के जरिए विदेशी विद्यार्थियों का चयन करना है। दास ने बताया, ‘हमारी योजना अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों के कुछ केंद्रों के लिए कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों के साथ मिलकर हॉस्टल बनाने की है। हम अपने साथ रजिस्टर्ड सभी संस्थानों से कह रहे हैं कि वे उन विद्यार्थियों को उनके देश का भोजन मुहैया कराएं।’

तय करनी है लंबी दूरी
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अनुसार, 2017-18 में विदेश में पढ़ने वाले भारतीय विद्यार्थियों ने ट्यूशन और हॉस्टल फी पर 2.8 अरब डॉलर (करीब 182 अरब रुपये) खर्च किए थे। उस दौरान विदेशी विद्यार्थियों ने भारत में सिर्फ 47.90 करोड़ डॉलर (करीब 31 अरब रुपये) खर्च किए।