घर में रहना पाप नहीं, घर को अपने भीतर रखना पाप है: संत चिन्मय दास

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कोटा। श्री पिप्पलेश्वर महादेव मंदिर के षष्ठम प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव (पाटोत्सव) के तहत श्री भक्तमाल कथा में रविवार को वृंदावन धाम के प्रख्यात संत चिन्मय दास महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि लोग आजकल एक शहर में अधिक स्थानों पर घर बनाते है,देश,विदेश और चांद तक जमीन खरीदने पहुंच रहे हैं।

परन्तु उन्हे संत के ह्रदय में भी अपनी जगह बनानी चाहिए, जो सच्ची निष्ठा से ही संभव है। जो भक्त, भक्ति भाव से प्रभु की कथा श्रवण करता है वही संत को प्रसन्न करता है। उन्होंने प्रसंगवश बताया कि प्रियादास महाराज जब श्रीभक्तमाल कथा सुना रहे तो एक वृद्ध ने प्रियादास को कहा कि उसने पूरे जन्म भगवान का र्कीतन नहीं किया।

परन्तु वह भक्तमाल की प्रति चाहता है। जिसे छाती पर रखकर मरने से जन्म व मरण के बंधन से मुक्त हो सके। उसकी मांग से प्रियादस भी प्रसन्न हुए और उसी भाव से तीन दिन भक्तमाल की प्रति लिख दी और वृद्ध को सौप दी। जब अंत समय में यम उसे लेने आये तो यम को देख वह जड़ हो गया और कुछ बोल न सका।

फिर श्री भक्तमाल की और इशारा करने लगा। उसके पोते ने जैसे ही इशारा समझा तो वृद्ध को भक्तमाल दी और उन्होने छाती पर रखकर प्राण त्यागे। भक्तमाल रखते ही यम के बंद टूट गए। भगवान के परम भक्त प्रहलाद, अर्जुन, हनुमान जी उन्हें लेने आए और वह जनम व मरण के बंधन से दूर हो गया।

संत चिन्मय दास महाराज ने कहा कि भक्त का उद्धार तो भगवान करते हैं। परन्तु जो भक्त के आश्रय में होता है उसका उद्धार भगवान भक्त से पूर्व करते हैं । चिन्मयदास महाराज ने कहा कि मनुष्य माया के फेर में उलझा रहता है।

वह कायारूपी किराये के मकान को अपना मानता है। यह एक दिन खाली करके जाना है। उसे प्रकार माया में उलझकर वह जिस घर में रहता उसे अपने भीतर रखता है। यह सब नश्वर है, जिसे हमें छोडकर जाना है। उन्होने इस अवसर पर कहा कि शास्त्र में लिखा है कि क्रोध नहीं करना चाहिए। इससे 1 माह के पुण्य नष्ट होते हैं।