Lok Sabha Election: दो पूर्व सीएम पुत्र मोह में उलझे हैं या बात कुछ और है!

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
Lok Sabha Election 2024: केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कोटा में शनिवार को आयोजित जनसभा में राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर कटाक्ष किया कि वे पुत्र मोह में इस तरह उलझ गए हैं कि उन्होंने अपने को जालौर-सिरोही संसदीय क्षेत्र तक ही सीमित कर लिया है जहां से उनके पुत्र वैभव गहलोत इस बार दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं।

अमित शाह प्रतिद्वंदी पार्टी कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर कटाक्ष करते समय अपनी ही पार्टी भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश में सबसे सशक्त और सर्वाधिक लोकप्रिय नेता श्रीमती वसुंधरा राजे का जिक्र करना भूल गए जिनके पुत्र दुष्यंत सिंह भी झालावाड़-बारां लोकसभा सीट से लगातार पांचवी बार चुनाव लड़ कर सदन में पहुंचने के लिए प्रयत्नशील हैं। इसमें उनका हरसंभव सहयोग एक जिम्मेदार मां की तरह श्रीमती वसुंधरा राजे कर रही है।

आम चुनाव और उसकी तिथि की चुनाव आयोग की ओर से औपचारिक घोषणा होने से पहले ही झालावाड़ में भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय से अलग दुष्यंत सिंह का चुनाव कार्यालय खोल दिया गया था और चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के बाद उनके नामांकन भरने के अवसर पर निकाली गई रैली में भाग लेने के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता श्रीमती वसुंधरा राजे अमूमन अब तक ज्यादातर समय दुष्यंत सिंह के चुनाव प्रचार के लिए संसदीय क्षेत्र में बारां एवं झालावाड़ जिले में ही मौजूद है।

इस संसदीय क्षेत्र में उनका अपना व्यापक प्रभाव होने के कारण जरूरी नहीं होते हुए भी वसुंधरा राजे यहीं बनी हुई हैं और राज्य की अन्य संसदीय क्षेत्रों में चुनाव प्रचार से कमोबेश दूरी बना रखी है।

यह दूरियां केवल 24 अन्य संसदीय क्षेत्रों तक ही नहीं है बल्कि श्रीमती वसुंधरा राजे ने तो भारतीय जनता पार्टी के इकलौते आलाकमान प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी और यहां तक कि खुद केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अब तक के राजस्थान के दौरों से भी दूरी बना रखी है।

यहां तक कि गृह मंत्री अमित शाह शनिवार को 85 किलोमीटर दूर कोटा में स्थानीय भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के समर्थन में जनसभा को संबोधित करते हुए पुत्र मोह को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर जमकर बरस रहे थे तब भी वे उनके साथ मंच पर मौजूद नहीं थी।

वजह स्पष्ट है कि उन्हें इस आम सभा के लिए उनकी गरिमा के अनुरूप बुलाया ही नहीं गया। यहां भी यह स्पष्ट रूप से प्रकट हो रहा है कि न तो कोटा के प्रत्याशी उनको बुलाने के इच्छुक थे और न ही अमित शाह ऎसी किसी मौजूदगी के तलबगार और दोनों ही सूरत का अंतिम नतीजा श्रीमती राजे की गैर मौजूदगी के रूप में नजर आना था जो आया।

पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय में संभवत यह पहला अवसर होगा जब लोकसभा चुनाव के समय श्रीमती वसुंधरा राजे राजस्थान से चुनावी परिदृश्य से पूरी तरह गायब है। जबकि मध्यप्रदेश में भिंड लोकसभा क्षेत्र से वर्ष 1984 में अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़कर हारने के बाद अगले ही साल 1985 में राजस्थान में धौलपुर से भारतीय जनता पार्टी की विधायक चुनी गई थी।

तब से ही राजस्थान की चुनावी राजनीति में सक्रिय रहीं है। उसके बाद वे झालावाड़ से पहली बार लोकसभा चुनाव जीती और तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री बनी।

पिछले विधानसभा चुनाव में आंशिक पूछपरख के बाद इस लोकसभा चुनाव से पहले प्रत्याशी तय करने से लेकर बाद में चुनाव अभियान की कमान सम्भालने तक भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने श्रीमती वसुंधरा राजे की पूरी तरह से उपेक्षा की। इसे फिलहाल नियति के रूप में स्वीकार कर वे अपने आप को अपने पुत्र दुष्यंत सिंह के झालावाड़-बारां संसदीय क्षेत्र तक सीमित रखे हुए हैं।

लोकसभा चुनाव के बाद कयास लगाया जा रहा है कि वे नई भूमिका के साथ सामने आ सकती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर भाजपा का नेतृत्व जिस तरह से राजस्थान की सभी 25 सीटों पर चुनाव जीतने के सपने संजोये बैठा है, उसके पूरे होने की उम्मीद बिलकुल भी नहीं है और चुनावी नतीजे चौकाने वाले हो सकते हैं।

क्योंकि लोकसभा चुनाव में चुनाव कांग्रेस बनाम भाजपा से कहीं अधिक मतदाता बनाम भाजपा बनता नजर आ रहा है तो नतीजे तो चौंकाने वाले होंगे ही। हालांकि उधर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत श्रीमती वसुंधरा राजे की तुलना में अलग हटकर भूमिका में है। यह सही है कि उन्होंने काफी हद तक अपने आप को पुत्र वैभव गहलोत के संसदीय क्षेत्र जालौर-सिरोही के चुनाव अभियान तक ध्यान केंद्रित कर रखा है लेकिन इसके बावजूद वे राज्य के अन्य लोकसभा क्षेत्रों में भी चुनाव प्रचार के लिए जा रहे हैं।

वे जोधपुर, उदयपुर सहित कुछ अन्य संसदीय क्षेत्रों में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। झालावाड़-बारां संसदीय क्षेत्र के छबड़ा नगर में भी उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी श्रीमती उर्मिला जैन भाया के समर्थन में शनिवार को सभा की लेकिन यह सही है कि इस चुनाव में उनकी भूमिका भी सीमित है। ऐसा माना जाता है कि अशोक गहलोत के लिए अब यह एक आखिरी बड़ा चुनाव साबित हो सकता है।