गीता कर्तव्यबोध का ग्रंथ, जिसमें हर समस्या का समाधान: स्वामी ज्ञानानन्द

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कोटा। एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट के जवाहर नगर स्थित समरस सभागार में शुक्रवार को गीता मनीषी महामण्डलेश्वर स्वामी ज्ञानानन्द महाराज का व्याख्यान हुआ। भगवत गीता में जीवन प्रबंधन विषय पर हुए इस व्याख्यान में स्वामी ज्ञानानन्द महाराज ने कहा कि गीता कर्तव्य बोध का ग्रंथ है। महाभारत का युद्ध पाण्डवों पर थोपा गया और जिसका जवाब देना उनका कर्तव्य था।

यहां कृष्ण एक कमांडर और अर्जुन एक सैनिक हैं। गीता में कृष्ण कुशल मनोचिकित्सक, आचार्य के रूप में भी हैं। वहीं कृष्ण विद्यार्थी भी हैं। गीता में हर स्थिति का हल है और हर समस्या का समाधान है। आज शिक्षा के वृहद स्वरूप की आवश्यकता है, इसके लिए गीता को शिक्षा से जोड़ा जाना चाहिए।

स्वामी ज्ञानानन्द महाराज ने कहा कि कोटा विद्यार्थियों और शिक्षकों की भूमि है। यहां एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट की देशभर में ख्याति है। ऐसे में विद्यार्थी और शिक्षक को भी कर्तव्य का भान होना चाहिए। विद्यार्थी घर से निकलने के साथ ही हर क्षण सोचे कि कोटा क्यों आया हूं, क्या लक्ष्य है, क्या कर्तव्य है और कैसे निर्वहन करना है। इसी तरह शिक्षक भी सोचे कि उनकी क्या दृष्टि होनी चाहिए, क्या करना चाहिए।

वर्तमान में जीएं
स्वामी ज्ञानानन्द महाराज ने सीख देते हुए कहाकि गीता वर्तमान में जीने की सीख देती है। भूतकाल की नहीं सोचें क्योंकि गुजर चुका है और भविष्य के बारे में आपको पता नहीं है। आपका वर्तमान ही आपका भूत और भविष्य निर्धारित करता है। ऐसे में वर्तमान में अपना कर्तव्य समझें और श्रेष्ठ देने की कोशिश करें। वर्तमान आपका मन है, ध्यान है जिसका उपस्थित रहना जरूरी है। हर बात को एकाग्रता के साथ सुनें और अपनी पूरी क्षमता के साथ श्रेष्ठ कार्य करने की कोशिश करें। मुझे क्या मिलेगा यह नहीं सोचें, यह सोचें कि मैं कितना अच्छा कर सकता हैं। दृष्टि बदलोगे तो परिणाम बदले हुए आएंगे।

संबंधों की विश्वसनीयता व मजबूती में कमी आई
स्वामी ज्ञानानन्द महाराज ने कहा कि वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या संबंधां में विश्वसनीयता व मजबूती में कमी आना है। व्यापारी व ग्राहक हो, चिकित्सक व मरीज हो, शिक्षक व विद्यार्थी हो, जनप्रतिनिधि और जनता हो या व्यासपीठ और श्रोता हो हर जगह अपनापन और विश्वास कम हो रहा है। यह इसीलिए हो रहा है कि हर व्यक्ति की मुझे क्या प्राप्त होगा यहां तक सीमित हो गई है। लोग यही सोचकर अपना व्यवहार रखते हैं, अपना कार्य करते हैं और समय देते हैं, जबकि हमें कार्य में डूबते हुए अपना श्रेष्ठ देने की सोच रखनी होगी। जब कोई अपनी क्षमता का श्रेष्ठ देता है तो यही सबसे बड़ा योग है और इससे ही एक सच्चा आनन्द मिलता है।