कॉल ड्रॉप तो लगेगा भारी जुर्माना, ट्राई के नए नियम कल से प्रभावी

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नई दिल्ली।कॉल ड्रॉप को फिर से रोकने की दिशा में सोमवार यानी 1 अक्टूबर से नई पहल होगी। ट्राई ने कहा है कि नए पैरामीटर के प्रभाव में आने से कॉल ड्रॉप की समस्या में बड़ा बदलाव हेगा। इसमें कॉल ड्रॉप के बदले मोबाइल ऑपरेटर कपंनियों पर भारी जुर्माने का प्रावधान है। कॉल ड्रॉप की परिभाषा में 2010 के बाद पहली बार बदलाव किया गया।

पहली बार डेटा ड्रॉप के लिए भी प्रावधान किया गया और कहा गया है महीने के प्लान में डाउनलोड में उपभोक्ता को कम से कम 90 फीसदी समय तय स्पीड के तहत सर्विस मिले। साथ ही महीने के प्लान में नेट ड्रॉप रेट अधिकतम 3 फीसदी हो। यह भी कहा गया है कि नेट के सामान्य ट्रांसमिशन में महीने में कम से कम 75 फीसदी तय स्पीड में सर्विस मिले।

सोमवार से प्रभावित कानून के अनुसार अब हर मोबाइल टावर से जुड़े नेटवर्क की हर दिन की सर्विस का मिलान होगा। साथ ही कॉल ड्रॉप को लेकर 5 लाख का जुर्माना लगेगा। साथ ही हर महीने 2 फीसदी से ही कम कॉल ड्रॉप तकनीकी दायरे में आएगी और बाकी पर कंपनियों को जुर्माना देना होगा।

अब तक सिर्फ 87 लाख जुर्माना
कॉल ड्रॉप पर बड़े विवाद के बाद इस पर जुर्माना लगाने का सिस्टम लागू किया गया था। तब से सभी कंपिनयों पर आर्थिक दंड लगाने का प्रावधान किया गया। तब से केवल 87 लाख का जुर्माना तमाम कंपनियों पर लगाया गया।

जानकारों के अनुसार एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि शहरों में स्मार्टफोन पर बढ़ते डेटा इस्तेमाल के कारण भी कॉल ड्रॉप की स्थिति और खराब हुई है। डेटा के लिए कंपनियों ने टावर पर ऐंटीना लगा रखा है। साथ ही डेटा का विस्तार तेजी से बढ़ा है।

कंपनियों के लिए डेटा अधिक मुनाफा देने का माध्यम भी बन रही है। अगले 5 सालों में 120 फीसदी विस्तार की संभावना बताई गई है। ऐसे में कंपनियां वायस सर्विस से अधिक डेटा से जुड़े इन्फ्रास्ट्रचर को सुधारने पर जोर दे रही हैं।

कोई अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहा है
कंज्यूमर वॉयस के हेमंत उपाध्याय ने कॉल ड्रॉप के मामले में व्यावहारिक पक्ष अपनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि मोबाइल ऑपरेटर कंपनियां और सरकार फुटबॉल की तरह जिम्मेदारी एक दूसरे की तरफ फेंक रही हैं। उपभोक्ता भी कम कीमत की सर्विस के लिए क्वॉलिटी के प्रति अधिक दबाव नहीं बनाता है।

कंपनियों की अपनी शर्त
कॉल ड्रॉप दूर करने के लिए मोबाइल ऑपरेटर कंपनियों ने अपनी शर्त सुनाई है। कंपनियों को सरकारी बिल्डिंगों, सरकारी जमीन और डिफेंस लैंड पर टावर लगाने की मंजूरी चाहिए। अगले 2 साल में देश में डेढ़ लाख नई मोबाइल टावर साइट्स की जरूरत है। इसे लगाने की जगह मिले।