कालेधन पर गठित विशेष जांच दल आरटीआई कानून के दायरे में : सीआईसी

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नई दिल्‍ली। उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद कालेधन पर गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई कानून) के तहत जवाबदेह है। केंद्रीय सूचना आयोग ने यह व्यवस्था दी है।

सूचना आयुक्त बिमल जुल्का ने एसआईटी को आरटीआई कानून के दायरे में लाते हुए कहा कि सरकार का हर कदम जनता की बेहतरी और लोकहित में होना चाहिए। उच्चतम न्यायालय के आदेश पर एक सरकारी अधिसूचना के जरिये 2014 में कालेधन पर एसआईटी का गठन किया गया।

इसका मकसद अर्थव्यवस्था में कालेधन का आकलन करना और उसके सृजन पर अंकुश के लिए उपाय सुझाने के लिए किया गया। उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एमबी शाह की अध्यक्षता में कालेधन पर एसआईटी का गठन किया गया। एसआईटी विदेशों में रखे गए कालेधन के मामलों की जांच कर रही है।

इस मामले में वह भारतीय रिजर्व बैंक, खुफिया ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो तथा वित्तीय आसूचना इकाई और शोध एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ के अलावा डीआरआई जैसी विभिन्न सरकारी एजेंसियों के साथ समन्वय बिठाते हुए काम रही है।

एसआईटी के आरटीआई कानून में दायरे में आने के संबंध में आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने वित्त मंत्रालय से जानकारी मांगी थी। इसमें उन्होंने सात बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी जिसमें एचएसबीसी बैंक की जिनेवा शाखा के पूर्व कर्मचारी हर्वे फाल्सिनी द्वारा एसआईटी चेयरमैन को भेजे गए पत्र और उसकी प्रतिलिपी मांगी थी।

वित्त मंत्रालय और आयकर विभाग ने आरटीआई के तहत मांगी गई कुछ जानकारी देने से यह कहते हुए इनकार किया कि यह किसी के विश्वास का मामला है और इसमें जांच चल रही है। यह भी कहा गया कि इसमें कुछ जानकारी एसआईटी के सदस्य सचिव के पास उपलब्ध होगी। इसके बाद नायक ने सूचना आयोग का रुख किया और आयोग से इस संबंध में एसआईटी को उपयुक्त आदेश देने का आग्रह किया।