Mangalyaan-2: भारत मंगल ग्रह पर एक और अंतरिक्ष यान भेजने के लिए तैयार

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बैंगलोर। Mangalyaan-2- इसरो ने मंगल ग्रह पर जाने की तैयारी एक बार फिर शुरू कर दी है। चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अधिकारियों ने कहा है कि भारत मंगल ग्रह पर एक और अंतरिक्ष यान भेजने के लिए तैयार है।

यहां बता दें कि नौ साल पहले अपने पहले प्रयास में इसरो ने लाल ग्रह की कक्षा में एक रॉकेट को सफलतापूर्वक स्थापित करके इतिहास रचा था। तब इसरो ऐसा करने वाली इकलौती अंतरिक्ष एजेंसी थी। मार्स ऑर्बिटर मिशन-2 को अनौपचारिक रूप से मंगलयान-2 नाम दिया गया है। मिशन से जुड़ी नई डिटेल सामने आई हैं। यह धरती से अत्याधुनिक रोवर लेकर मंगल ग्रह पर लैंड करेगा और चंद्रयान-3 की तरह मंगल ग्रह का अध्ययन करेगा। यान अपने साथ चार पेलोड लेकर जाएगा। वैज्ञानिक उपकरण मंगल ग्रह के पहलुओं का अध्ययन करेंगे, जिसमें अंतरग्रहीय धूल और मंगल ग्रह का वातावरण और पर्यावरण शामिल है।

सूरज का चक्कर काट रहे हमारे सौरमंडल के सभी ग्रहों में धरती इकलौता ग्रह है, जहां जीवन है। धरती के अलावा मंगल दूसरा ऐसा ग्रह है, जहां जीवन की संभावना है। वहां का वायुमंडल गैसों से भरा है, साथ ही वहां बर्फ भी है। इसलिए वैज्ञानिकों को ऐसा लगता है कि धरती के बाद मंगल ही वो ग्रह है, जहां जीवन संभव हो सकता है।

इसलिए वैज्ञानिक लगातार मंगल ग्रह के बारे में जानकारियां जुटाने की कोशिश में रहते हैं। हाल ही में मंगल ग्रह पर मौजूद नासा के रोवर ने वहां के बवंडर का वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया था। यह दावा किया था, वहां इस तरह के तूफान आते रहते हैं। तमाम प्रयोगों के बाद भी मंगल ग्रह अभी वैज्ञानिकों के लिए कठिन पहेली बना हुआ है।

मंगल ग्रह पर जीवन की तलाश के लिए इसरो ने भी दूसरी बार अपने कदम बढ़ाए हैं। इसरो के वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत मंगल ग्रह पर जल्द ही एक और यान भेजने की तैयारी कर रहा है। भारत ने मंगल पर पहला रॉकेट 5 नवंबर 2013 में भेजा था। इसे भारत ने मंगल ग्रह की कक्षा पर सफलतापूर्वक स्थापित किया था। 24 सितंबर को, भारत ने अपने पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में प्रवेश करके इतिहास रचा था। यह एक ऐसी उपलब्धि थी, जो तब तक किसी भी अन्य अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा हासिल नहीं की गई थी। इसरो की नजर अब मंगल ग्रह पर और बड़ी उपलब्धि हासिल करने की है।

मिशन का उद्देश्य : एचटी द्वारा प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, मार्स ऑर्बिटर मिशन -2, जिसे अनौपचारिक रूप से मंगलयान -2 नाम दिया गया है, अपने साथ चार पेलोड लेकर जाएगा। वैज्ञानिक उपकरण मंगल ग्रह के पहलुओं का अध्ययन करेंगे, जिसमें अंतरग्रहीय धूल और मंगल ग्रह का वातावरण और पर्यावरण शामिल है। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “ये सभी पेलोड विकास के विभिन्न चरणों में हैं।”

दूसरा मिशन : मिशन दस्तावेज़ के अनुसार, दूसरा मिशन एक मार्स ऑर्बिट डस्ट एक्सपेरिमेंट (MODEX), एक रेडियो ऑकल्टेशन (RO) प्रयोग, एक ऊर्जावान आयन स्पेक्ट्रोमीटर (EIS) और एक लैंगमुइर प्रोब और इलेक्ट्रिक फील्ड एक्सपेरिमेंट (LPEX) लेकर जाएगा।

धूल का अध्ययन : मिशन दस्तावेज में कहा गया है कि MODEX मंगल ग्रह के हाई एल्टिट्यूड को समझने में मदद करेगा। वैज्ञानिक के मुताबिक. “मंगल ग्रह पर अंतरग्रहीय धूल कणों (आईडीपी) का कोई माप नहीं है। उपकरण हाइपरवेलोसिटी (> 1 किमी/सेकेंड) पर यात्रा करते हुए कुछ सौ एनएम से कुछ माइक्रोमीटर तक के आकार के कणों का पता लगा सकते हैं। यह पता लगाया जा सकता है कि क्या मंगल के चारों ओर कोई वलय है और यह भी पुष्टि कर सकते हैं कि क्या धूल अंतरग्रहीय है यानी फोबोस या डेमोस (मंगल ग्रह के दोनों उपग्रह) से आ रहे हैं। धूल का अध्ययन आरओ प्रयोग के परिणामों को समझाने में मदद कर सकता है।”

माइक्रोवेव ट्रांसमीटर: इलेक्ट्रॉन घनत्व को मापने के लिए आरओ प्रयोग विकसित किया जा रहा है। यह उपकरण अनिवार्य रूप से एक्स-बैंड आवृत्ति पर काम करने वाला एक माइक्रोवेव ट्रांसमीटर है जो मंगल ग्रह के वातावरण के व्यवहार को समझने में मदद कर सकता है।

ईआईएस: अंतरिक्ष एजेंसी मंगल ग्रह के वातावरण में सौर ऊर्जा कणों और सुपर-थर्मल सौर पवन कणों को चिह्नित करने के लिए एक ईआईएस भी विकसित कर रही है। इससे वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह के वायुमंडल के नुकसान के पीछे के कारकों को समझने में मदद मिलेगी। उपकरण उच्च-ऊर्जा आवेश कणों को मापेगा।

विद्युत सेंसर: मंगल ग्रह पर भेजे जाने वाले यान के रोवर को विकसित किया जा रहा है। यह इलेक्ट्रॉन तापमान और विद्युत क्षेत्र तरंगों को मापने में सक्षम होगा, जो मंगल ग्रह पर प्लाज्मा वातावरण की बेहतर तस्वीर देगा। दस्तावेज़ में कहा गया है, “रोवर में एक लैंगमुइर जांच (एलपी) और दो विद्युत सेंसर(ईएफ) लगे हैं।”

मंगल पर पहला मिशन: पहले मिशन का उद्देश्य तकनीकी रूप से लाल ग्रह की यात्रा के साथ मंगल ऑर्बिटर अंतरिक्ष यान के डिजाइन, कार्यान्वयन और प्रक्षेपण को प्रदर्शित करना और यान को मंगल की कक्षा में स्थापित करना था। पहले मंगल मिशन में ग्रह की सतह की विशेषताओं, आकृति विज्ञान, खनिज विज्ञान और वायुमंडल का अध्ययन करने के लिए पांच वैज्ञानिक पेलोड लगे थे।