JIO साबित हुई RCOM के ताबूत की अंतिम कील

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नई दिल्ली।बड़ा भाई जहां कारोबार की दुनिया में रोज सफलता के नए झंडे गाड़ रहा है, वहीं छोटा भाई अनिल अंबानी दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया है। वित्तीय हालत इतनी खस्ता हो चुकी है कि अनिल अंबानी के मालिकाना हक वाली कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) महज 500 करोड़ रुपये का कर्ज भी चुकाने में खुद को लाचार महसूस कर रही है।

दोनों भाइयों ने कारोबार की शुरुआत बराबर मूल्य की संपत्ति से की, लेकिन आज की तारीख में दोनों की वित्तीय हालत में जमीन-आसमान का अंतर है। इसके पीछे आखिर क्या कारण रहे हैं। अनिल अंबानी ने शुरुआत से टेलिकॉम बिजनस के विस्तार पर फोकस किया, क्योंकि बंटवारे में बड़े भाई मुकेश अंबानी को ऑइल और गैस का कारोबार मिला था।

लेकिन भारी-भरकम निवेश और अति प्रतिस्पर्धा से अनिल का सपना परवान नहीं चढ़ सका। दिन-प्रतिदिन कर्ज बढ़ता गया, जो आज की तारीख में लगभग 47,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। दूरसंचार क्षेत्र में मुकेश अंबानी की कंपनी जियो की इंट्री (सितंबर 2016) आरकॉम के ताबूत की अंतिम कील साबित हुई।

टेलिकॉम पर ही किया फोकस
साल 2005 में आरकॉम मिलने के बाद अनिल अंबानी ने साल 2006 में इसे शेयर बाजार पर सूचीबद्ध कराया। लेकिन इस क्षेत्र के बेहद चुनौतीपूर्ण प्रकृति का होने और भारी-भरकम निवेश की जरूरत की वजह से कंपनी पर इसका असर पड़ना शुरू हो गया। बाजार 2जी वॉइस से 3जी और 4जी इंटरनेट की तरफ शिफ्ट हो रहा था।

नई प्रौद्योगिकी के लिए उपकरणों और स्पेक्ट्रम खरीदने के लिए भारी-भरकम निवेश की जरूरत थी। इस बीच आरकॉम को तथाकथित जीएसएम लॉबी से भी निपटना था, जिनमें एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया जैसी कंपनियां शामिल थीं। अति प्रतिस्पर्धा और आक्रामक निवेश का असर कंपनी पड़ना शुरू हो गया, जो अंततः भारी कर्ज के रूप में सामने आया और अनिल अंबानी को इस कर्ज से कभी छुटकारा नहीं मिल पाया।

नाकाम डील ने भी डुबोई नैया
आरकॉम डूबने के पीछे कई नाकाम डील भी बड़ी वजह रहीं। कंपनी की साल 2010 में जीटीएल इन्फ्रा से 50,000 रुपये की डील खटाई में पड़ गई। लेकिन फिर भी अंबानी ने 3जी, अंडर-सी केबल और नेटवर्क के विस्तार के लिए निवेश जारी रखा।

इसके बाद साल 2017 में कंपनी का एयरसेल के साथ विलय का सौदा भी नाकाम रहा। कंपनी की कनाडा की इन्फ्रा कंपनी ब्रुकफील्ड के साथ टावर सेल डील भी असफल रही। इसके बाद कंपनी ने 2जी और 3जी से नेटवर्क से बाहर निकलने की घोषणा कर दी, जिससे उसे 75 फीसदी (लगभग 8 करोड़) से अधिक ग्राहकों से हाथ धोना पड़ा।

कर्ज के जाल से निकल नहीं पाई कंपनी
जब आरकॉम ने इंटरप्राइज बिजनस की तरफ अपना ध्यान केंद्रित किया, तो उसकी कर्ज निपटान प्रक्रिया और कठिन हो गई, क्योंकि कर्जदाताओं ने कर्ज की वसूली के लिए कोर्ट का रुख कर लिया।

स्वीडन की कंपनी एरिक्शन भी 550 करोड़ रुपये के डिफॉल्ट के लिए कोर्ट पहुंच गई। न्यायालय के हस्तक्षेप और मुकेश अंबानी के साथ सौदा नाकाम होने से कंपनी के शेयरों पर बेहद बुरा असर पड़ा है। नौ जनवरी, 2008 को यह महज 5.62 रुपये पर पहुंच गया, जो कभी 821 रुपये का हुआ करता था।