{वस्तुओं पर अभी जितना सेंट्रल एक्साइज और वैट लगता है, -जीएसटी रेट उसके आसपास ही होगा
नई दिल्ली । जीएसटीमें सेवाओं पर 18% टैक्स लगेगा, जो अभी 15% है। इससे सेवाएं थोड़ी महंगी हो जाएंगी। लेकिन स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी करीब 60 सेवाएं अभी की तरह इसके दायरे से बाहर रहेंगी। अभी जिन सेवाओं पर 15% से कम टैक्स लगता है, उन्हें 5% या 12% की श्रेणी में रखा जाएगा। ट्रांसपोर्ट को 5% श्रेणी में रखा जा सकता है। राजस्व सचिव हसमुख अढिया ने विशेष बातचीत में यह जानकारी दी।
वस्तुओं (गुड्स) पर अभी एक्साइज और वैट मिलाकर जितना टैक्स लगता है, जीएसटी में उसे निकटतम स्लैब में रखा जाएगा। इससे कुछ चीजों पर टैक्स रेट बढ़ेगा तो कुछ पर कम भी होगा। जीएसटी में चार रेट- 5, 12, 18 और 28 फीसदी तय किए गए हैं। काउंसिल हर साल रेट की समीक्षा करेगी। सालाना 20 लाख रु. तक टर्नओवर वाले जीएसटी से बाहर हैं। इससे करदाता कम होंगे।
सर्विस टैक्स के लिए 10 लाख रुपए सालाना न्यूनतम टर्नओवर की सीमा है। अगर 10-20 लाख रु. टर्नओवर के दायरे में 30-50 लाख कारोबारी हैं तो वे जीएसटी में पंजीकृत नहीं होंगे। जीएसटी के बाद सरकार के रेवेन्यू ग्रोथ में पहले साल गिरावट संभव है। अनुमान है कि पहले साल अप्रत्यक्ष कर संग्रह 8-9% ही बढ़ेगा। बीते साल एक्साइज, सर्विस टैक्स और कस्टम ड्यूटी कलेक्शन 20% बढ़ा था। एक वजह तो अमल में आने वाली दिक्कतें हैं। इसके अलावा राज्यों को 14% ग्रोथ के हिसाब से मुआवजा दिया जाना है।
तंबाकू और लक्जरी वस्तुओं पर जो सेस लगेगा उसी से राज्यों को मुआवजे का भुगतान होगा। अभी सेस का पूरा पैसा केंद्र को मिलता है। अढिया ने माना कि कंपनियों पर कंप्लायंस का बोझ बढ़ेगा। वे जितने राज्यों में बिजनेस करेंगी, हर राज्य में रजिस्ट्रेशन कराना होगा। हर जगह अलग टैक्स चुकाना होगा और रिटर्न भरना होगा। उन्होंने कहा कि जीएसटी खपत आधारित टैक्स मॉडल है। इसमें सेंट्रलाइज्ड रजिस्ट्रेशन संभव नहीं है।
राष्ट्रपति ने दी चार बिलों को मंजूरी जीएसटीसे जुड़े चार बिलों को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मंजूरी दे दी है। ये बिल हैं- सेंट्रल जीएसटी, इंटीग्रेटेड जीएसटी, यूटी जीएसटी और कंपेंसेशन बिल। लोकसभा ने इन्हें 29 मार्च और राज्यसभा ने 6 अप्रैल को पारित किया था। अब सभी राज्यों को स्टेट जीएसटी बिल पास करना है। वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स रेट 18-19 को काउंसिल की बैठक में तय होगा।