सफ़ेद तिल के कोरियाई टेंडर में भारत की हिस्सेदारी बढ़ने के आसार

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नई दिल्ली। सफ़ेद तिल के आज 12 हज़ार टन के कोरियाई टेंडर के खुलते ही इस टेंडर में भारत को मिलने वाली हिस्सेदारी को लेकर जारी असमंजस के माहौल का पटाक्षेप हो जायेगा। बाज़ार के बड़े जानकार 12 हज़ार टन के इस टेंडर में भारत की हिस्सेदारी 75-85 फ़ीसदी तक रहने की बात कर रहे हैं, और इस तरह से नंबरों में यह संख्या क़रीब 9/10 हजार टन के आसपास रहने के आसार है। जानकर सफ़ेद तिल के इस बड़े कोरियाई टेंडर में क्वालिटी के लिए निर्धारित शर्तो में फेरबदल होने की बात भी कर रहें है।

दूसरी ओर,गुजरात की मंडियों में अब बढ़िया क्वालिटी की तिल् की आवक लगातार कमज़ोर हो रही है। अतः अब इस टेंडर में बिड भरने हेतु बढ़िया क्वालिटी के तिल का स्टॉक लेकर चलने वाले निर्यातक ही आगे आकर बिड भरेंगे। तिल बाज़ार के बड़े जानकार मानते है कि वर्तमान में न केवल भारत, बल्कि विश्व के दूसरे अन्य तिल उत्पादक देशों में भी बढ़िया क्वालिटी के तिल का भंडार अब ज़्यादा शेष नही है। विश्व के दूसरे अन्य प्रमुख उत्पादक देशो में भी बढ़िया क्वालिटी की तिल् मिलना मुश्किल है।

अफ्रीकन देशों में फ़िलहाल शिपमेन्ट और पोर्ट पर मौजूदा अनेक समस्याओं के चलते इस टेंडर में इन देशों को किसी भी तरह की हिस्सेदारी मिलने पर संशय बना हुआ है। पाकिस्तान में भी बढ़िया क्वालिटी की तिल् का स्टॉक ज़्यादा नही बताया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़िया क्वालिटी के तिल की उपलब्धता लगातार कमज़ोर ही रहने से इस टेंडर में बिड-क़ीमतें ऊँची ही रहने के आसार हैं।

गुजरात में तिल के एक बड़े निर्यातक के अनुसार राज्य की तिल उत्पादक मंडियो में फ़िलहाल 3000/3300 बोरी सफ़ेद तिल् की आवक हो रही है, और इसमें सिर्फ 30 फ़ीसदी माल ही क्वालिटी वाला आ रहा है। दूसरी ओर, देश के कुल तिल उत्पादन में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले क्षेत्र मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और राजस्थान लाइन में किसानो के कुल उत्पादन का बड़ा हिस्सा आवक के रूप में बाजार में पहुँच चुका है। फ़िलहाल, बाजार में स्टॉकिस्ट के माल की बिक्री हो रही है। जानकार यह भी मानते है कि स्टॉकिस्ट के भी लगभग 75-80 फ़ीसदी माल अब बिक चुके है। इस वज़ह से बाज़ारों में सफ़ेद तिल् की आपूर्ति दिन- प्रतिदिन घटती ही जा रही है।

दूसरी ओर, मूँगफली की कीमतों में लगातार जारी तेज़ी को देखते किसानों का एक तबका पूरी तरह से गर्मी वाली मूँगफली की बिजाई तरफ आकर्षित हो रहा है, और गुजरात की मंडियों में हाल ही में जारी मूँगफली बीज़ की ख़रीद के आंकड़े इसकी एक बानगी भर है। अगर बारिश समय से हुयी तो मूँगफली की फ़सल को नुकसान कम रहेंगे और नुकसान बढ़ते भी है तो भी फ़सल का एक बड़ा हिस्सा तो किसान के हाथ में आ ही जाता है। लेकिन अगर ऐसा तिल की फ़सल के साथ होता है तो तिल की पूरी ही फ़सल ही समाप्त होने की आशंका बढ़ जाती है, और किसान के हाथ में कुछ नहीं आता है।