नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबडे ने कहा है कि कोर्ट के रूप में हमारी जिम्मेदारी संविधान में वर्णित भावना की रक्षा करना है। हमारी सर्वोच्च जिम्मेदारी पूर्वजों द्वारा सौंपे इस दस्तावेज (संविधान) में नागरिकों को दी गई स्वतंत्रता को कानून-व्यवस्था के नाम पर राज्यों के अतिक्रमण से संरक्षित करने की है।
उन्होंने कहा, एक संस्था के रूप में न्यायपालिका का सम्मान कानून का राज बनाए रखने की चिंता का सम्मान है। संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल द्वारा आयोजित वर्चुअल कार्यक्रम में सीजेआई ने कहा, अभिव्यक्ति की आजादी से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं है। संविधान निर्माताओं ने इस स्वतंत्रता और उन परिस्थितियों में लचीला संतुलन रखा है, जिनमें राज्य इससे इनकार कर सकते हैं।
न्यायपालिका के जिम्मे राज्य के हितों और लोगों को संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रता में एक साथ संतुलन बैठाने का काम है। हमारे बुजुर्ग हमेशा इस संतुलन की बात करते रहे हैं। पुरानी कहावत है कि आपकी स्वतंत्रता वहीं खत्म हो जाती है जहां दूसरे की नाक शुरू होती है। उन्होंने कहा, बोलने की आजादी पर पाबंदियां व्यक्तियों और संस्थाओं के हित में हैं।
संविधान का मूल स्वरूप, खूबियां बरकरार रखनी होंगी
सीजेआई बोबडे ने कहा, संविधान निर्माताओं की यह परिकल्पना है कि अगर लंबे समय तक अस्तित्व रखना है तो केशवानंद भारती मामले में आए फैसले के अनुरूप संविधान का मूल स्वरूप बरकरार रखना होगा।
उन्होंने कहा, केवल यह जरूरी नहीं कि संविधान बचा रहे, बल्कि उससे ज्यादा जरूरी यह है कि संविधान अपनी मूल भावना, विशेषताओं के साथ काम करता रहे। न्यायपालिका का काम राज्य के हितों और लोगों को संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रता के संतुलन बनाने का है।
कोरोनाकाल में भी कोर्ट ने काम करना जारी रखा
शीर्ष अदालत की उपलब्धियाें का जिक्र करते हुए सीजेआई ने कहा, कोरोनाकाल की कठिन परिस्थिति में एक दिन भी सुप्रीम कोर्ट ने काम बंद नहीं किया। यह इसलिए भी उल्लेखनीय है कि क्योंकि इस दौरान बड़ी तादाद में ऐसे मामले आए जो मौलिक अधिकारों और कमजोर तबके हक से जुड़े थे। कोरोनाकाल में अदालतों में कम केस आने का आर्थिक दुष्प्रभाव बार के सदस्यों पर भी पड़ा। ओडिशा और मुंबई में बार के कुछ सदस्यों को जीवनयापन के लिए सब्जी बेचने जैसा भी काम करना पड़ा।