नई दिल्ली । सोने पर तीन फीसद की वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दर काफी कम है और इसे बढ़ाए जाने की जरूरत है, क्योंकि इसका ज्यादातर इस्तेमाल देश के अमीर लोग करते हैं। इकोनॉमिक सर्वे के लेखक और भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन का कुछ ऐसा ही मानना है।
वित्त वर्ष 2016-17 के आर्थिक सर्वे वॉल्यूम II को बीते शुक्रवार संसद में पेश किया गया था। इसमें कहा गया, “सोने और आभूषण उत्पाद जो कि बहुत अधिक अमीर लोगों की ओर से बेहिसाब खपत वाली वस्तुएं हैं और उन पर 3 फीसद की जीएसटी दर बहुत कम है।”
दस्तावेज़ में यह भी कहा गया है कि शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी कर की आवश्यकता थी। इसमें कहा गया, “स्वास्थ्य और शिक्षा को पूरी तरह से बाहर रखना इक्विटी के साथ असंगत है, क्योंकि ये अमीर लोगों की ओर से बेहिसाब रूप से उपभोग की जाने वाली सेवाएं हैं।”
स्वास्थ्य और शिक्षा पूरी तरह से टैक्स नेट से बाहर हैं और जीएसटी के तहत इसे छूट दी गई है। इसके अलावा अल्कोहल, पेट्रोलियम, एनर्जी प्रोडक्ट्स, इलेक्ट्रिसिटी और कुछ लैंड और रियल एस्टेट से जुड़े लेनदेन जीएसटी के दायरे से बाहर हैं।
लेकिन जीएसटी के इतर केंद्र और राज्य इस पर कुछ कर लगाते हैं। इलेक्ट्रिसिटी को जीएसटी के फ्रेमवर्क में लाने से इंडस्ट्री में प्रतिस्पर्धा में इजाफा होगा क्योंकि बिजली पर लगाने वाले कर में मैन्युफैक्चरर की कॉस्ट भी शामिल होती है जिसे इनपुट टैक्स क्रेडिट के माध्यम से क्लेम किया जा सकता है।
नोट – इस खबर पर अपना कमेंट अवश्य लिखें। क्या जनता पर टैक्स का इतना ज्यादा भर डालना उचित है। जितनी टैक्स की दरें भारत में हैं, उतनी दुनिया के किसी देश में नहीं है। जीएसटी में एक देश एक रेट का नारा भी झूठा है।