59 एप बेन करने के बाद घुटनों पर आया चीन

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कोलकाता। सीमा पर भारत और चीन के बीच विवाद (india china standoff) का नतीजा ये हुआ है कि इससे चीन की कंपनियों को नुकसान होना शुरू हो गया है। कुछ समय पहले ही भारत ने भी सख्त रुख अपनाते हुए 59 चीनी ऐप बैन किए थे। यूसी वेब, यूसी न्यूज और वीमेट ने तो अपना कारोबार भी समेटना शुरू कर दिया है।

ये सब देखते हुए चीन की स्मार्टफोन बनाने वाली शाओमी, वीवो, हायर, ओपो और वनप्लस जैसी कंपनियों ने अपनी मार्केटिंग और एडवर्टाइजिंग स्ट्रेटेजी में बड़ा बदलाव किया है। बल्कि यूं कहिए कि चीन ने एक तरह से भारत के सामने घुटने टेक दिए हैं और मान लिया है कि उसकी इन कंपनियों का वजूद भारत में बचाए रखने के लिए उसे भारत का गुणगान करना ही होगा।

एक बड़ी कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने ऑफ रिकॉर्ड बोलते हुए कहा कि वह भी प्रोडक्ट लॉन्च करने की स्ट्रेटेजी में बदलाव करेंगे। फेस्टिव सीजन की प्लानिंग और निवेश की प्लानिंग में भी बदलाव किया जाएगा। अभी सब कुछ करीब 1 महीने के लिए रोक दिया गया है, जब से चीनी सैनिकों ने भारत के जवानों पर हमला किया, जिसमें करीब 20 जवान शहीद हुए।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वीवो, रीयलमी, शाओमी और वन प्लस फिर से अपना लोकल प्रोडक्शन बढ़ाने और मेक इन इंडिया को अपने विज्ञापनों में वरीयता देने पर विचार कर रही हैं। कंपनियां प्रोडक्ट की पैकेजिंग में भी मेक इन इंडिया लिखना चाह रही हैं। बता दें कि कुछ समय पहले ही चीनी शाओमी ने अपने स्टोर पर लगे चीनी होर्डिंग ढक दिए थे और उन पर मेक इन इंडिया लिखना शुरू कर दिया था।

वीवो, शाओमी, ओपो, रीयलमी और वनप्लस ने नए मॉडल भी लॉन्च करना शुरू कर दिया है और नई कैटेगरी में घुसना भी शुरू कर दिया है। वीवो के नए मॉडल्स के लिए इसके विज्ञापन अखबारों, टीवी और बाकी जगहों पर जल्द ही आना शुरू होंगे। हायर कंपनी ने भी नए मार्केटिंग प्लान शुरू किए हैं। हालांकि, जब वीवी, शाओमी, ओपो, रीयल मी और वनप्सल से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कोई भी टिप्पणी नहीं की।

इंडस्ट्री के अनुमान के मुताबिक चीन की इलेक्ट्रॉनिक्स और स्मार्टफोन कंपनियां कुल मिलाकर अपने प्रोडक्ट्स के प्रमोशन पर सालाना करीब 2500 करोड़ रुपये खर्च करती हैं। जानकार बताते हैं कि अप्रैल-जून तिमाही में चीनी कंपनियों ने अपने प्रतिद्वंद्वी सैमसंग से कुछ मार्केट का हिस्सा जरूर खोया है। बता दें कि चीनी स्मार्टफोन भारत का करीब 80 फीसदी हिस्सा कवर करते थे, 40 फीसदी तक टेलीविजन का कारोबार भी चीनी कंपनियों के ही पास है और 6-7 फीसदी होम अप्लायंस भी चीन की कंपनियां बनाती हैं।