जैविक खेती अपनाकर ही बन सकते हैं किसान आत्मनिर्भर

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कोटा। इस समय जब पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है, भारत में भी इसका व्यापक प्रभाव देखने को मिल रहा है। भारत के प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में आत्मनिर्भर भारत की बात कही है। चूंकि भारत की 70 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती हैं, जिसका एक बहुत बड़ा हिस्सा खेती एवं खेती से जुड़े व्यवसायों पर निर्भर है।

अत: जब तक हम अपनी खेती और अपने किसान को आत्मनिर्भर नहीं बनायेंगे, तब तक आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना करना बेकार है। हमारे देश की तरह हमारा किसान भी खेती में दूसरो के भरोसे जी रहा है। शायद यहीं एक कारण है कि ज्यादातर किसान खेती करना छोड़ रहे हैं और वो उनके लिए घाटे का धन्धा साबित हो रही है।

खेती में बाजार की निर्भरता ने किसान की कमर तोड़ दी है तथा वो बैंकों और व्यापारियों के बोझ तले दब गया है। नतीजन उसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यदि हमें किसान को आत्मनिर्भर बनाना है तो उसकी बाजार पर निर्भरता को खत्म करना पड़ेगा। मुख्य रूप से किसान को इन पहलुओं के बारे में सोचना पड़ेगा।

खाद, कीटनाशक एवं बीज के लिए निर्भरता: वर्तमान खेती की पद्वति में किसान इन तीनों आदानों के लिए बाजार पर निर्भर रहता है। जबकि जैविक खेती की बात करें तो इसमें किसान के पास उपलब्ध संसाधनों से मृदा पोषण, कीट नियंत्रण एवं बीज तैयार किया जाता है। खाद के लिए किसान अपने खेत पर कम्पोस्ट, वर्मीकम्पोस्ट, जीवामृत, सींग खाद आदि तैयार कर सकता है, जो पूर्णतया जो पूर्णतया प्राकृतिक है तथा मृदा पोषण में लाभकारी है।

चूंकि जैविक खेती में कीट नियंत्रणसे ज्यादा बचाव को महत्ता दी गई है और यदि पूरी पद्वति जैविक हो तो कीट एवं रोगका प्रकोप भी कम होता है। तथा समय-समय पर हर्बल स्प्रे, नीमास्त्र, दशपर्णी अर्क आदि का उपयोग करके फसल में कीट एवं रोगों से होने वाले नुकसान से बचा सकता है। बीज की यदि हम बात करें तो ज्यादा उत्पादन के लालच में किसान हाईब्रिड बीजों को काममें लेते हैं।

अपने परम्परागत बीजों को बचा के रखने की कला को भूलते जा रहे हैं। आजकल बाजार में बीज के नाम पर हो रहे गोरखाधन्धे में फंस कर किसान नकली बीजों के व्यापार को बढावा दे रहे हैं। यदि किसान अपना स्वयं का बीज तैयार करने लगे तो धीरे-धीरे बीज की गुणवत्ता भी की मिट्टी, पानी और पर्यावरण के अनुकूल होकर अच्छा उत्पादन देने लग जायेगा। इससे किसान के बीज की गुणवत्ता तो सुधरेगी ही, साथ ही बाजार पर निर्भरता भी कम हो जायेगी।