दुनिया के लिए भारत बना देवदूत, चाइना ने अड़ंगा लगाया तो मोदी ने समझाया

0
844

नई दिल्ली। कोरोना वायरस से लड़ाई में भारत देवदूत के रूप में सामने आया है जो अपनी 1.3 अरब जनसंख्या की जरूरतों को समझता है लेकिन जब पूरी मानवजाति एक भयावह दौर से गुजर रही है तो इसने अपना दिल ही नहीं बल्कि दवाइयों के भंडार भी खोल दिए। अमेरिका जैसी महाशक्ति हो या यूरोपीय देश या सार्क के सहयोगी भारत ने हर देश को अपने यहां उपलब्ध दवाई भेजी है, मकसद सिर्फ इतना ही है कि इस भयावह बवंडर से मानव समुदाय को बचाया जाए।

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) के लिए बनाई गई 13 देशों की सूची
एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों ने बताया कि भारत ने HCQ टैबलेट देने के लिए 13 देशों की सूची बनाई है। अमेरिका ने 48 लाख टैबलेट मांगी थीं लेकिन अभी उसे 35.82 लाख टैबलेट दी जाएंगी। जर्मनी को भी 50 लाख हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (hydroxychloroquine) टैबलेट भेजी जाएगी। इस सूची के तहत पड़ोसी देश और सार्क सहयोगी बांग्लादेश को 20 लाख, नेपाल को 10 लाख, भूटान को दो लाख, श्रीलंका को 10 लाख, अफगानिस्तान को पांच लाख और मालदीव को 2 लाख टैबलेट की जाएगी।

इन देशों को भेजा जाएगा दवाई बनाने का मटीरियल
भा
रत अमेरिका, ब्राजील और जर्मनी को ऐक्टिव फर्मास्यूटिकल इंग्रिडेंट्स (API) भेजेगा जिसका इस्तेमाल जरूरी मेडिसीन बनाने में किया जाता है। अमेरिका को 9 मिट्रीक टन एपीआई भेजी गई है। वहीं, जर्मनी को पहली खेप में 1.5 मीट्रिक टन एपीआई भेजी गई थी। ब्राजील को 0.50 मीट्रिक टन एपीआई की पहली खेप भेजी जानी है।

कोरोना जंग में भारत ऐसे बन गया जरूरत
न्यूक्लियर हथियार से लेकर ट्रेड व्यापार तक भारत को आंख तरेरने वाले,एनएसजी की सदस्यता से लेकर सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता में अड़ंगा डालने वाले, भारत के आंतरिक मामले पर बेवजह हस्तक्षेप करने वाले देश आज भारत के समक्ष याचक की मुद्रा में खड़े हैं। भारत कभी उनकी जरूरत बन जाएगा इसका अंदाजा शायद ही उन्हें रहा होगा। इसकी वजह कोरोना मरीजों के इलाज में इस्तेमाल किए जाने वाली ऐंटी मलेरिया मेडिसीन हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और पैरासिटामॉल (paracetamol) है जिसका भारत सबसे बड़ा उत्पादक है।

चीन ने डाला अंड़गा, भारत ने बड़े भाई जैसा संभाला
दुनिया कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ रही थी तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने चुप्पी साध रखी थी पिछले महीने सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता चीन कर रहा था और जब अस्थायी सदस्यों ने कोरोना पर चर्चा का प्रस्ताव पेश किया तो चीन ने यह कहकर ठुकरा दिया कि सुरक्षा परिषद जनस्वास्थ्य समस्याओं पर चर्चा का मंच नहीं। चीन जहां बाधाएं पैदा करने में व्यस्त रहा, भारत दूरगामी दृष्टिकोण के साथ बड़े भाई की तरह दुनिया को एकजुट करने में लगा हुआ है।