कोटा। सामान्यतः देश में चने की नई फसल की सबसे पहले आमदनी मध्यप्रदेश में प्रारंभ होती है लेकिन बीच-बीच में बदली वाले मौसम के अलावा रूक-रूककर बारिश होने से रबी सीजन की चना सहित आने वाली सभी दलहनीय फसलों को नुकसान तो ज़्यादा नही है, लेकिन लगातार बादल रहने पर पौध पर लगने वाली फली में कीडे लगने की आशंका बढ़ गयी है।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर, रतलाम से लेकर भोपाल, बीनागंज, इंदौर लाइन में बादल व बरसात से मिट्टी में नमी की मात्रा बढ़ने से चने की तैयार होने वाली फली में कीडे लगने का खतरा बढ़ गया है। जानकार मानते है कि यदि मौसम का मिज़ाज रूक-रूककर इसी तरह बना रहा तो इन क्षेत्रों में बोई हुई फसल की उत्पादकता 18 से 20 फीसदी घटने की आशंका बढ़ने के आसार है।
जबकि दूसरी ओर,महाराष्ट्र में अब फ़सल में दाने पुष्ट हो गये है, वहां पर किसी भी तरह की बारिश से चने की फसल कों नुक़सान ही पहुँचने की आशंका है।अब इधर राजस्थान व हरियाणा के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी मौसम खराब होने से देशी चने की फसल को कोई व्यापक लाभ नही मिलेगा। इसके साथ-साथ मसूर की फ़सल को भी कोई अतिरिक्त लाभ नही मिलने की उम्मीद की जा रही है।
इन्ही सब परिस्थितियों को देखते हुए चने की नई फसल के कुछ ज़्यादा ही लेट होने एवं उत्पादकता बढ़ने के अनुमान कमज़ोर पड़ने के आसार बन गए है।गौरतलब रहे है कि देशी चने पर प्राकृतिक रूप में एक नमकीन केमिकल पैदा हो जाता है, वह बरसात न होने एवं मौसम साफ होने से फली में कीडे पैदा नही होने देता है।
ज्ञातव्य रहे कि चने की फसल व दाने काफी मीठे होते है और बरसात एवं बदली के मौसम चलते वह प्राकृतिक कैमिकल धुल जाने की स्थिति में कीड़े फ़सल को नुकसान पहुंचा देते है। चने की फसल को जब तक फूल नही लगे है तभी तक ही बरसात की आवश्यकता होती है।
देशी चने की ऊंचाई बढ़ने पर फली कम लगती है। दूसरी ओर बिजाई भी प्रत्याक्षदर्शी कम बता रहे है। इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए 4550/4575 रूपए की लारेंस रोड पर खड़ी मोटर के चने के आगे के व्यापार में कोई जोखिम नज़र नही आ रहा है। जबकि वायदे में भी 4400 रुपये का चना भी लाभ देने वाला लग रहा है। जानकार मानते है कि अभी भी नई फसल के मंडियो में पहुँचने में कम से कम दों माह का समय लगेगा।