बेंगलुरू। न्याय में बेवजह की देरी राेकने के लिए सुप्रीम काेर्ट के चीफ जस्टिस एसए बाेबडे अदालताें में आर्टिफिशियल सिस्टम लागू करने की संभावनाएं खंगाल रहे हैं। उन्हाेंने शनिवार काे बेंगलुरू में न्यायिक अधिकारियाें के सम्मेलन में यह बात कही। अदालताें में बड़ी संख्या में लंबित मुकदमाें के मद्देनजर उनकी टिप्पणी अहम है।
चीफ जस्टिस ने साफ किया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जजाें की जगह नहीं लेगा। सिर्फ फैसले के दाेहराव वाले, मैथेमेटिकल और मैकेनिकल हिस्साें के लिए इसकी मदद ली जा सकती है।
सीजेआई ने कहा, “कई बार जज भी मुझसे इस तकनीक को लाने पर सवाल कर चुके हैं। मैं साफ करना चाहता हूं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसानी जजाें की जगह नहीं लेने जा रहा। यह इंसानी विवेक की जगह नहीं ले सकती।”
उन्हाेंने कहा कि अदालताें के लिए यह सुनिश्चित करना अहम है कि न्याय मिलने में बेवजह देरी न हाे। इस मकसद से अदालताें के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम विकसित करने की संभावनाएं हैं।
जल्दी न्याय मिले, यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी
हमारे पास जाे भी प्रतिभाएं और काैशल हैं, उनका इस्तेमाल करके सुनिश्चित करना चाहिए कि एक उचित समय के भीतर लाेगाें काे न्याय मिले। न्याय में देरी किसी भी व्यक्ति के कानून हाथ में लेने की वजह नहीं हाेनी चाहिए। चीफ जस्टिस ने केस दायर किए जाने से पहले मध्यस्थता की व्यवस्था की भी जाेरदार पैरवी की। उन्हाेंने कहा कि यह आज के वक्त की जरूरत है।
पहले एआई के इस्तेमाल का समर्थन कर चुके हैं चीफ जस्टिस
सीजेआई बनने से पहले जस्टिस बोबडे ने कहा था कि अदालतों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और उच्च तकनीक जरूरी है। पिछले महीने नागपुर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में भी उन्होंने चर्चा के दौरान एआई की खूबियां गिनाई थीं।
हालांकि, पूर्व सीजेआई आरएम लोढ़ा ने कोर्ट के कामकाज में एआई के इस्तेमाल पर चिंता जताई थी। उन्होंने चीफ जस्टिस बोबडे से अपील की कि वे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को फैसलों की प्रक्रिया में शामिल करने से पहले इसके अच्छे और बुरे पहलुओं को देख लें।