GST / टैक्स रेट से लेकर स्लैब तक में बड़े बदलाव की तैयारी

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नई दिल्ली। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू हुए ढाई वर्ष के करीब हो रहे हैं। इस बीच जीएसटी काउंसिल ने टैक्स ढांचे से लेकर, टैक्स रेट तक कई बदलाव किए और अब कहा जा रहा है कि यह 5% के मौजूदा बेस टैक्स स्लैब को बढ़ाकर 9% से 10% तक करने पर विचार कर सकती है। टैक्स रेवेन्यू बढ़ाने को प्रयासरत जीएसटी काउंसिल मौजूदा 12% का टैक्स स्लैब खत्म करते हुए इसके दायरे में आने वाले सभी 243 प्रॉडक्ट्स को 18% के टैक्स स्लैब में धकेलने पर भी मंथन कर सकती है।

टैक्स के दायरे में आ सकते हैं कुछ टैक्स फ्री प्रॉडक्ट्स
अगर ये अनुमान सही होते हैं और इसी अनुसार जीएसटी स्ट्रक्चर में बदलाव किया गया तो ग्राहकों की जेबें तो ढीली होंगी, लेकिन सरकार के खजाने में 1 लाख करोड़ रुपये ज्यादा आने लगेंगे। अनुमान है कि टैक्स दरों में प्रस्तावित बदलाव के अलावा अब उन वस्तुओं पर भी टैक्स लगाया जा सकता है जो अभी टैक्स फ्री हैं।

अभी ‘महंगे’ निजी अस्पतालों में इलाज से लेकर होटलो में प्रति रात 1 हजार रुपये तक के किराए वाले कमरों में रहने पर बिल के भुगतान के वक्त टैक्स नहीं देना पड़ता है। शीर्ष सूत्रों की मानें तो ये सभी कर मुक्त वस्तुएं एवं सेवाएं जीएसटी के दायरे में आ सकती हैं। कहा जा रहा है कि जीएसटी काउंसिल के पास कार जैसे उत्पादों पर लेवी बढ़ाने की गुंजाइश नहीं के बराबर है।

घट रही है टैक्स से कमाई
1 जुलाई, 2017 को जीएसटी लागू होने के बाद से सैकड़ों वस्तुओं पर टैक्स रेट में कटौती हुई जिससे प्रभावी टैक्स रेट 14.4% से घटकर 11.6% पर पहुंच चुका है। इससे टैक्स से प्राप्त रकम में सालाना करीब दो लाख करोड़ रुपये की कमी आई है। अगर पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश के मुताबिक, 15.3% की रेवेन्यू न्यूट्रल टैक्स रेट पर विचार किया जाए तो यह घाटा बढ़कर 2.5 लाख करोड़ रुपये हो जाता है।

आर्थिक सुस्ती ने बढ़ाया संकट
देश में गहरा रही आर्थिक सुस्ती ने टैक्स रेवेन्यू में गिरावट की समस्या बढ़ा दी है। चूंकि केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू होने के पहले चार वर्षों तक राज्यों के कर संग्रह में 14% से कम वृद्धि होने की सूरत में अपने खाते से भरपाई करने का वादा किया है, इसलिए कम कर संग्रह के कारण अब उसे हर महीने करीब 13,750 करोड़ रुपये राज्यों को बतौर मुआवजा देना पड़ रहा है। एक आधिकारिक आकलन के मुताबिक, अगले वर्ष तक यह रकम बढ़कर 20 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।