नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की द्विमासिक मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक सोमवार (आज) से शुरू होगी। इस तीन दिवसीय बैठक में लिए गए फैसलों की जानकारी 5 दिसंबर को दी जाएगी। बैंकर्स और जानकारों का मानना है कि आरबीआई इस बैठक में भी रेपो रेट में कटौती का ऐलान कर सकता है।
बीते काफी समय से देश में आर्थिक मंदी का माहौल बना हुआ है। इससे उबरने के लिए केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति इस साल फरवरी से अक्टृबर तक अपनी लगातार पांच बैठकों में रेपो दर में पांच बार कटौती कर चुकी है। पांच बार में रेपो दर कुल 1.35 फीसदी घटाई गई है। इसके बावजूद अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत नहीं दिखे हैं।
इस बीच चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और अन्य आर्थिक आंकड़ों में लगातार गिरावट जारी है। ऐसे में आरबीआई पर एक बार फिर से रेपो दर घटाने का दबाव होगा। रेपो दर वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देता है।
दूसरी तिमाही में 4.5 फीसदी पर पहुंची जीडीपी वृद्धि दर
सरकार की ओर से पिछले सप्ताह जारी आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की 30 सितंबर को समाप्त दूसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर घटकर 4.5 फीसदी रह गई जो छह वर्ष का निचला स्तर है। पहली तिमाही में यह पांच फीसदी पर रही थी।
रिजर्व बैंक ने अक्टूबर में जारी मौद्रिक नीति बयान में अनुमान जताया था कि दूसरी तिमाही में विकास दर 5.3 प्रतिशत रहेगी, जबकि अगले छह महीने में इसके 6.6 से 7.2 फीसदी के बीच रहने का अनुमान व्यक्त किया गया था। यह लगातार छठी तिमाही है जब विकास दर में गिरावट दर्ज की गई है। साथ ही यह वित्त वर्ष 2012-13 की अंतिम तिमाही के बाद विकास दर का निचला स्तर है।
आठ बुनियादी उद्योगों का उत्पादन सूचकांक भी लुढ़का
अर्थव्यवस्था के लिए जीडीपी का आंकड़ा एक मात्र चिंता का विषय नहीं है। आठ बुनियादी उद्योगों का उत्पादन सूचकांक लगातार दूसरे महीने पांच प्रतिशत से ज्यादा लुढ़क गया है। सितंबर में 5.1 फीसदी की गिरावट के बाद अक्टूबर में इसमें 5.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। अगस्त में औद्योगिक उत्पादन में भी 1.1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी जबकि सितंबर में यह 4.3 प्रतिशत घटा था।
एक तरफ उद्योग जगत की ओर से सस्ते कर्ज के लिए रेपो दर में कटौती की मांग की जा रही है और दूसरी तरफ सरकार भी हाउसिंग सेक्टर में फंसी परियोजनाओं में जान फूंकना चाहती है जिसके लिए मकान खरीदने वालों की किस्त कम होनी जरूरी है। इस प्रकार आरबीआई पर रेपो दर कम करने का इस बार दोहरा दबाव होगा।