नई दिल्ली। महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम का असर सोमवार को संसद के चल रहे मौजूदा सत्र में भी दिख सकता है। जहां छुटपुट कुछ मामलों को छोड़ दें, तो लगभग शांत चल रहे संसद के दोनों सदन फिर से गर्मा सकते है। इसकी उम्मीद इसलिए भी है, क्योंकि इस मामले में कांग्रेस, एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) और शिवसेना एक साथ खड़ी है।
वैसे भी महाराष्ट्र में जिस तरह से फड़नवीस सरकार बनी है, उस पूरे घटनाक्रम से तीनों ही पार्टियां को भारी झटका लगा है। ऐसे में वह सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ेगी। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट का वह दरवाजा खटखटा चुकी है, ऐसे में वह केंद्र सरकार को घेरने के लिए संसद में भी इस मामले को तूल दे सकती है।
कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना ने जिस तरह से महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर केंद्र सरकार और राज्यपाल की भूमिका पर सवाल खड़ा कर रही है, ऐसे में उसे इस मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस का भी साथ मिल सकता है। बता दें कि तृणमूल कांग्रेस पहले से ही पश्चिम बंगाल में राज्यपाल की भूमिका को लेकर केंद्र का घेराव करने में जुटी है।
हालांकि राज्यपालों की भूमिका पर कोई पहली बार सवाल उठ रहे है, ऐसा नहीं है। केंद्र की सरकारों पर शुरु से ही इस पद के दुरुपयोग का मुद्दा उठता रहा है। यही वजह थी कि केंद्र और राज्य संबंधों को लेकर जस्टिस रणजीत सिंह सरकारिया की अगुवाई में 1983 में गठित किए गए आयोग ने राज्यपाल की नियुक्ति का अधिकार केंद्र के बजाय राज्यों की सलाह पर करने की बात कही थी।
इसका मकसद साफ था कि राज्य और केंद्र के बीच पैदा होने वाले टकराव को कम किया जाए। यह बात अलग है कि इस अधिकार से केंद्र की सरकारें खुद को अलग नहीं कर पायी। ऐसे में यदि विपक्ष राज्यपालों की भूमिका को मुद्दा बनाती है, तो एक बार फिर से उनकी भूमिका लेकर नए सिरे से बहस शुरु हो सकती है।
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस या दूसरे विपक्षी दलों के पास वैसे भी इस बार संसद सत्र के दौरान सरकार को घेरने के लिए कोई बड़ा राजनीतिक मुद्दा नहीं था। ऐसे में वह महाराष्ट्र को लेकर केंद्र सरकार और राज्यपाल दोनों पर निशाना साध सकेंगी। हालांकि संसद में विपक्ष का पैनापन सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी निर्भर करेगा।