मर्यादित जीवन ही शांति का मूल मंत्र है: आर्यिका सौम्यनन्दिनी

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कोटा। महावीर नगर विस्तार योजना स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी संघ के पावन वर्षायोग के अवसर पर माताजी ने प्रवचन करते हुए कहा कि संयम में रहना सीखें। संयमित व मर्यादित जीवन ही शांति का मूल मंत्र है। हम नियमों में तो रह सकते है पर संयम में नहीं।

माताजी ने कहा कि कभी-कभी दूसरों का भला करना भी सीखो। अगर आप दूसरों का भला करोगे, तो वही किया हुआ दूसरों का भला आपके लिए लाभ बनकर आता है। लेना ही लेना लोभ है। लेना-देना मनुष्य धर्म है। देना ही देना संत का धर्म है।

उन्होंने कहा कि मनुष्य सामाजिक प्राणी है। उसे केवल अपने लिए नहीं जीना, बल्कि दूसरों का भला करके भी जीना है। दुनिया का नियम है जो लुटाओगे, वहीं लौटकर आएगा। जो औरों को ठगता है, वह एक दिन खुद भी ठगा जाता है। जो देता है, वहीं पाता है। जरा देकर तो देखो। मांगने पर देना अच्छा है, लेकिन जरूरत समझकर बिना मांगे देना और भी अच्छा है। जरूरत पाप नहीं है, जरूरत से ज्यादा रखना पाप है।

उन्होंने कहा कि सत्य और ईमान का व परोपकार का रास्ता स्वर्ग में जाकर खत्म होता है। दुर्भाग्य है कि आज सत्यावदियों, ईमानदारों और परोपकारी लोगों का अकाल सा पड़ा गया है, क्योंकि अब लोगों का विश्वास है कि ईमानदारी के दिन लद गए हैं। वे तर्क देते हैं कि देखो टेढ़- मेढे वृक्षों को जहां कोई नहीं छेड़ता और सीधे सपाट वृक्ष हमेशा ही काटे जाते हैं।

उन्होंने कहा कि सच्चाई के दिन कभी नहीं लदते। कीमती फर्नीचर हमेशा सीधी सपाट लकड़ी का ही बनता है। उन्होंने कहा कि दूसरों की भलाई करना अच्छा है, लेकिन अपनी बुराई ढूंढना और भी अच्छा है। सत्य बोलना अच्छा है पर दूसरों के प्राणों की रक्षा के लिए झूठ बोलना और भी अच्छा है। कर्ज चुकाना अच्छा है, पर अच्छाई का आमंत्रण और भी ज्यादा अच्छा है।