कोटा। महावीर नगर विस्तार योजना दिगम्बर जैन मंदिर में चल रहे आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ससंघ के पावन वर्षायोग के दौरान रविवार को प्रवचन करते हुए माताजी ने कहा कि जैन धर्म के दस लक्षणों को आचरण में उतारने वाला व्यक्ति ही धार्मिक कहलाने के योग्य होता है। धर्म के मार्ग पर चलने से मनुष्य का जीवन सार्थक होता है।
उन्होंने कहा कि सुख और दुख का चक्र दिन तथा रात्रि की भांति बदलता रहता है। एक सामान्य व्यक्ति जहां सुख में उन्मत हो जाता है और दुःख में अधीर, वहीं धर्म के स्वरूप में स्थित व्यक्ति दोनों स्थितियों में सम रहता है। सूर्य उगते समय लाल रंग का होता है तथा डूबते समय भी लाल रंग का ही होता है।
महापुरुष भी इसी प्रकार सुख-दुःख में हमेशा सम अवस्था में रहते हैं। क्षमा एक अलौकिक गुण है। वह तो महान व्यक्तियों का आभूषण है। निर्बल व्यक्ति किसी की गलती को क्षमा नहीं कर सकता। अति कृपालु परब्रह्म क्षमा का अनन्त भंडार हैं। यही क्षमा का गुण उन्हें महावीर स्वामी जैसी महानता प्रदान कर पाई।
दम का अर्थ है, दमन अर्थात् मन, चित्त और इन्द्रियों से विषयों का सेवन न होने देना। अब तक जो इंद्रियां मायावी विषयों का सेवन कर रही थीं, चित्त विषयों के चिन्तन में लगा हुआ था तथा मन उनके मनन में तल्लीन था, उसे रोक देना अर्थात सात्विकता की और ले जाना ही दम (दमन) कहलाता है।
किसी के धन की इच्छा न करना ही अस्तेय है। यदि मनुष्य मन, वाणी तथा कर्म से अस्तेय (चोरी न करना) में प्रतिष्ठित हो जाए, तो उसे सभी रद्यों की प्राप्ति स्वतः ही हो जाएगी। इससे पहले पारस जैन पारसमणि़ के द्वारा मंगलाचरण किया गया। वहीं, निर्भय सेठिया, सुनीता जैन, सुधांशु जैन, अपूर्वा सेठिया परिवार के द्वारा चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन व शास्त्र भेंट किया गया।