कीमतों में कमी का लाभ ग्राहकों को नहीं देने पर मुनाफाखोरी-रोधी प्राधिकरण करेगा कार्रवाई
नई दिल्ली। यदि कोई कंपनी प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद कीमतों में कमी नहीं करती है और ग्राहकों को उसका फायदा नहीं देती है तो उसका पंजीकरण रद्द किया जा सकता है। जीएसटी के तहत गठित होने वाले मुनाफाखोरी-रोधी प्राधिकरण के पास ऐसी कंपनियों को कारोबार करने से रोकने का पूरा अधिकार होगा।
हालांकि विशेषज्ञ इस प्रावधान को बेहद कठोर बता रहे हैं, लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि यह प्रावधान डराने के लिए है और इसका इस्तेमाल तभी किया जाएगा, जब कोई और चारा नहीं रह जाएगा। हालांकि यह प्राधिकरण स्थायी संस्था के रूप में काम नहीं करेगा और गठन के दो साल बाद इसे खत्म भी किया जा सकता है।
जीएसटी परिषद ने जो नियम तय किए हैं, उनके अनुसार प्राधिकरण कंपनियों को कीमतें कम करने का आदेश भी दे सकता है। यदि कोई कंपनी अपने उत्पादों की कीमतें नहीं घटाती है तो प्राधिकरण उसे ग्राहक को पैसे लौटाने के लिए भी कह सकता है। साथ ही उत्पाद खरीदने की तारीख से 18 फीसदी सालाना की दर से ब्याज भी ग्राहक को मिलेगा।
मुनाफाखोरी की रकम के बराबर जुर्माना
प्राधिकरण कंपनियों पर मुनाफाखोरी की रकम के बराबर जुर्माना भी लगा सकता है। डेलॉयट के एमएस मैनी ने कहा कि कंपनी का पंजीकरण ही रद्द कर देने का प्रावधान ‘थोड़ा डराने’ वाला है। इससे कारोबार में अफसरशाही बढ़ सकती है। लेकिन वह यह भी मान रहे हैं कि प्रावधान का इस्तेमाल बार-बार नियम का उल्लंघन करने वाली कंपनियों के खिलाफ ही किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि किसी भी नियम में यह महत्वपूर्ण होता है कि कौन सा प्रावधान कितने प्रावधानों के बाद आता है। पंजीकरण रद्द करने का प्रावधान चार प्रावधानों में सबसे आखिरी है। पहला प्रावधान कीमतों में कमी करना, दूसरा ग्राहकों को पैसे लौटाने और तीसरा जुर्माना लगाना है। इनसे काम नहीं चला तो पंजीकरण रद्द किया जाएगा। प्राधिकरण ऐसे मामलों में पहले दो प्रावधानों पर विचार कर सकता है।
स्थायी समिति बनाने का अधिकार
प्राधिकरण का चेयरमैन सचिव स्तर का होगा और इसमें चार नामित सदस्य होंगे, जो केंद्रीय या राज्य कर विभाग के आयुक्त होंगे। प्राधिकरण यह निर्धारण करेगा कि वस्तुओं या सेवाओं पर कर में कमी या इनपुट कर के्रडिट का लाभ कंपनियों या डीलरों द्वारा ग्राहकों को किस तरह से दिया जाए।
परिषद के पास मुनाफाखोरी नियंत्रण के लिए स्थायी समिति बनाने का अधिकार होगा, जिसमें राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारी शामिल होंगे। प्रत्येक राज्य में राज्य-स्तरीय जांच समिति का भी गठन होगा। नियम के अनुसार स्थायी समिति लिखित शिकायत मिलने की तिथि के दो माह के अंदर आवेदक द्वारा उपलब्ध कराए गए सबूत की जांच करेगी।