सीबीएसई में वर्ष 2018 से खत्म होगी नंबर बढ़ाकर देने की परंपरा

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नई दिल्ली। मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) ‘नंबर बढ़ाकर देने की कुप्रथा’ को खत्म करेगा और इसकी जगह 2018 से ज्यादा साइंटिफिक मॉडरेशन पॉलिसी लागू करेगा। वैसे तो सीबीएसई बोर्ड में नंबर बढ़ाकर देने की परंपरा इस साल से ही खत्म होनी थी लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दिया। फैसले पर रोक का मुख्य कारण इसके समय को लेकर था।

इस गलत परंपरा को खत्म करने के लिए एचआरडी मिनिस्ट्री ने एक इंटर बोर्ड वर्किंग ग्रुप (आईबीडब्ल्यूजी) का गठन किया है। आईबीडब्ल्यूजी में आठ बोर्ड्स शामिल हैं, जो नंबर बढ़ाकर देने की परंपरा पर रोक लगाने के लिए विस्तार से योजना तैयार करेंगे। आईबीडब्ल्यूजी नियमित रूप से चर्चा करेगा और एक ऐसा मॉडल तैयार करेगा, जिस पर सभी बोर्ड्स को अमल करना होगा।

कुछ अहम विषयों का सभी बोर्ड्स का सामान्य पाठ्यक्रम भी होगा। ग्रेस मार्क्स पॉलिसी वेबसाइट्स पर अलोड की जाएगी और पाठ्येत्तर विषयों के लिए मार्क्स एवं ग्रेड्स अलग से देने होंगे। इसके अलावा असेसमेंट में समानता लाने के लिए सीबीएसई के साथ बोर्डों को प्रश्नपत्र साझा करने की भी योजना है।

एचआरडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘योजना के मुताबिक इस साल मॉडरेशन पॉलिसी को खत्म नहीं किया जा सका। अगले साल तक इस योजना पर सभी बोर्ड्स अमल करें, हम इस दिशा में काम कर रहे हैं। वास्तव में सभी बोर्ड्स अगले साल से नंबर बढ़ाकर देने की परंपरा को खत्म करने के लिए तैयार हो गए हैं।

कुछ बोर्ड्स ने इस साल से इस नियम को लागू करने को लेकर 24 अप्रैल, 2017 को हुई मीटिंग में कुछ समस्याएं गिनाई थीं लेकिन 2018 से इसे लागू करने के लिए सभी तैयार हैं।’ अप्रैल में 32 स्कूल एजुकेशन बोर्ड्स ने इस साल से नंबर बढ़ाकर नहीं देने का फैसला किया था। लेकिन एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने इस साल मॉडरेशन पॉलिसी को जारी रखने का निर्देश दिया, जिससे मजबूर होकर सीबीएसई को इस साल मॉडरेशन पॉलिसी की परंपरा को जारी रखना पड़ा।

एचआरडी मिनिस्ट्री के अधिकारी ने बताया, ‘हमने देखा कि कुछ बोर्ड्स ने इस साल मॉडरेशन पॉलिसी को नहीं अपनाया और रिजल्ट्स में इसका असर देखने को भी मिला। ऐसा करने वाले बहुत ही कम बोर्ड्स हैं। इसलिए यह एक शुरुआत है।’ यह भी फैसला लिया गया है कि सीबीएसई उन राज्यों के साथ अपने क्वेस्चन पेपर साझा करेगा, जहां एनसीईआरटी की पुस्तकें चलती हैं। इससे सभी राज्यों में पूछे जाने वाले सवालों में एकरूपता आ सकेगी।