नई दिल्ली। रिजर्व बैंक बॉरोअर्स के समय से लोन रिपेमेंट नहीं करने की आदत पर रोक लगाने के मकसद से पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री (PCR) बनाने की शुरुआती तैयारी में लग गया है। विलफुल डिफॉल्टर सहित सभी तरह के बॉरोअर्स के डिटेल के साथ बड़े पैमाने पर बनने वाली इस रजिस्ट्री में उन बॉरोअर्स का भी ब्योरा होगा, जिनके खिलाफ मुकदमा चल रहा होगा।
PCR में मार्केट रेगुलेटर सेबी, कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री, गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स नेटवर्क (GSTN) और इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (IBBI) से मिलने वाले डेटा को भी ऐड किया जाएगा। इससे बैंकों और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस को मौजूदा और नए बनने वाले बॉरोअर्स के पूरे प्रोफाइल का एक्सेस रियल टाइम बेसिस पर होगा।
रिजर्व बैंक ने रजिस्ट्री बनवाने के लिए पिछले तीन साल में 100 करोड़ रुपये से ज्यादा के टर्नओवर वाली कंपनियों से एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट मंगाए हैं। आरबीआई ने सूचनाओं में एकरूपता नहीं होने की समस्या दूर करने, क्रेडिट एक्सेस को बढ़ावा देने और इकनॉमी में क्रेडिट कल्चर को मजबूत बनाने के लिए इस साल जून में PCR बनाने का ऐलान किया था।
आरबीआर्इ ने यह पता लगाने के लिए एक हाई लेवल टास्क फोर्स बनाया था कि अभी लोन को लेकर कितनी सूचनाएं उपलब्ध हैं, कितनी सूचनाएं पर्याप्त हैं और कितनी कमी है जिसे PCR के जरिए पूरा किया जा सकता है।
EOI में लिखा है, ‘बुनियादी तौर पर, PCR छोटी से छोटी डिटेल वाली ऑथेंटिकेटेड क्रेडिट इनफॉर्मेशन की डिजिटल रजिस्ट्री होगी और यह इन सबसे सरोकार रखनेवालों के लिए फाइनेंशियल इनफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराने और मौजूदा क्रेडिट र्इकोसिस्टम को मजबूत बनाने का काम करेगी।’
कितनी भी रकम का लोन हो या किसी भी कैटेगरी का बॉरोअर हो, PCR को अनिवार्य रूप से हर लोन की अहम जानकारी मुहैया कराई जाएगी। अभी देश में छोटी मोटी डिटेल वाली सूचनाएं जमा करने वाली कई संस्थाएं हैं और सबका अलग मकसद और कवरेज एरिया है।
RBI का सेंट्रल रिपॉजिटरी ऑफ इनफॉर्मेशन ऑन लार्ज क्रेडिट्स (CRILC) कुल 5 करोड़ रुपये के मिनिमम एक्सपोजर वाले लोन के लिए बॉरोअर लेवल का सुपरवाइजरी डेटाबेस है।इसके अलावा देश में चार प्राइवेट क्रेडिट इनफॉर्मेशन कंपनियां (CIC) चल रही हैं। RBI ने सभी रेगुलेटेड एंटिटीज को सभी चारों CIC को इंडिविजुअल रूप से क्रेडिट इनफॉर्मेशन देना अनिवार्य किया हुआ है।
EOI के मुताबिक, प्रस्तावित रजिस्ट्री से मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स, सेबी, GSTN, CERSAI, यूटिलिटी बिलर और सेंट्रल फ्रॉड रजिस्ट्री और विलफुल डिफॉल्टर्स जैसे सूचना के स्रोतों के साथ आसानी से इंटीग्रेशन हो सकेगा।
बॉरोअर्स अपना क्रेडिट इनफॉर्मेशन भी एक्सेस कर सकेंगे और अपने बारे में मुहैया कराई गई सूचना में संशोधन करा सकें। फाइनेंशियल सिस्टम में बढ़ते बैड लोन की समस्या को देखते हुए को देखते हुए PCR बनाना जरूरी हो गया है। बैंकिंग इंडस्ट्री का एनपीए लगभग 10 लाख करोड़ रुपये हो गया है।