नई दिल्ली। त्योहारी सीजन में ग्राहकों को लुभाने के लिए भ्रामक विज्ञापन देने वाले निजी क्षेत्रों के खिलाफ केंद्र सरकार ने सख्त रवैया अख्तियार किया है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय का कहना है कि भ्रामक विज्ञापन के खिलाफ शिकायत निपटारा (गामा) पोर्टल पर आने वाले हर एक मामले पर गंभीरता से कदम उठाया जा रहा है।
दरअसल, मंत्रालय के सामने समस्या यह है कि उपभोक्ता संरक्षण विधेयक-2018 संसद में पारित नहीं हुआ है। इसलिए उसे पुराने कानून के तहत ही भ्रामक विज्ञापनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ेगी। यही वजह है कि राज्य सरकारों को भी इस मामले में सतर्कता बरतने को कहा गया है।
सही पाई गई थीं 191 शिकायतें
दरअसल, भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) के पास बड़ी संख्या में शिकायतें मिली हैं। इनमें 35 फीसदी शिकायतें टेलीविजन, 15 फीसदी डिजिटल प्लेटफॉर्म और शेष अन्य पर प्रसारित/प्रकाशित भ्रामक विज्ञापनों की हैं।
एएससीआई ने मार्च, 2018 में जारी रिपोर्ट में भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ 191 शिकायतों को सही ठहराया था। उपभोक्ता शिकायत परिषद से उसे करीब 269 शिकायतें मिली थीं। इनमें सर्वाधिक 114 शिकायतें स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र, 24 शिक्षा, 35 खाद्य एवं पेय पदार्थ, निजी सुरक्षा के सात और 11 शिकायतें अन्य क्षेत्र की थीं।
नए कानून में होगा अधिक कठोर सजा का प्रावधान
उपभोक्ता संरक्षण विधेयक-2018 में भ्रामक विज्ञापन पर पहली बार 10 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। दोबारा ऐसा होने पर 50 लाख रुपये तक का जुर्माना और दो से पांच साल तक की सजा का प्रावधान है। हाल ही में अभिनेत्री और सांसद हेमा मालिनी द्वारा किए गए केंट आरओ के विज्ञापन का मामला दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा है।
इसमें सीधे तौर पर पक्षकार नहीं होने के बावजूद मंत्रालय ने हलफनामा दाखिल किया है। इस विज्ञापन के वाक्य में ‘सबसे शुद्ध’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है। कंपनी ने भी एएससीआई द्वारा भेजे गए नोटिस के खिलाफ याचिका दायर की है।
वहीं, मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि सबसे शुद्ध या बेहतर होने जैसे दावे भ्रामक हैं या नहीं, यह कोर्ट तय करेगा। लेकिन त्योहारी सीजन में मंत्रालय की ओर से ऐसे तमाम विज्ञापनों के खिलाफ आने वाले शिकायतों पर कदम उठाया जाएगा। वह चाहे किसी भी माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जा रहा हो।