जयपुर। राजस्थान में होने वाली ऑनलाइन दवाओं की बिक्री अब सरकारी नजर से बची नहीं रह पाएगी। ऐसा उन प्रावधानों से होगा, जिन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय लागू करने जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने ‘ई-फार्मेसी’ के जरिए दवा बेचने पर नियम का मसौदा तैयार कर जारी किया है और इस पर सुझाव व आपत्तियां मांगी गई हैं।
राज्य का चिकित्सा विभाग भी इस मसौदे का अध्ययन कर जरूरी व्यवस्था करने में जुट गया है। तैयार मसौदे के अनुसार दवाओं का ऑनलाइन कारोबार करने वाली कंपनियों को न केवल रजिस्ट्रेशन कराना होगा बल्कि मरीजों का ब्यौरा भी रखना होगा। कोई भी व्यक्ति बिना पंजीकरण के स्टोरेज तथा वितरण का कार्य नहीं कर सकेगा।
ऑनलाइन दवाओं का कारोबार करने वालों को सेंट्रल व स्टेट लाइसेंसिंग अथॉरिटी से रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा। साथ ही सूचना तकनीक अधिनियम- 2000 के नियमों की पालना करनी पड़ेगी। प्रदेश में ई-फार्मेसी के जरिए सालाना 50 से ज्यादा करोड़ का कारोबार होता है।
अभी रहता है दवाइयों की क्वालिटी पर संदेह
मौजूदा स्थिति में राजस्थान समेत देशभर में मरीज ऑनलाइन दवाएं खरीदकर खा रहे हैं। लेकिन क्वालिटी के बारे में संदेह रहता है। साथ ही कंपनियों की कोई जिम्मेदारी भी तय नहीं होती है। फार्मा एक्सपर्ट वी.एन.वर्मा व प्रवीण कुमार का कहना है कि वर्तमान में नकली और घटिया दवा मिलने के बाद भी ग्राहक न तो कहीं शिकायत कर सकता है और ना ही उस कंपनी के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। जिसका प्रमुख कारण ई-फार्मेसी के रेग्यूलेशन नहीं ही होना है।
रजिस्ट्रेशन फीस रहेगी 50 हजार रुपए
नए नियमों के तहत लाइसेंस फीस 50,000 रुपए रखी है। कंपनियों के नाम सीडीएससीओ की वेबसाइट पर सार्वजनिक और असली-नकली का पता करने के लिए लोगो जारी होगा। जिससे फर्जी कंपनी बनाकर मरीजों के साथ ठगी नहीं कर सकेंगी।
औषधि नियंत्रण विभाग के अधिकारी भी कंपनियां चलाने वालों के स्टोर की जांच और मॉनिटरिंग भी कर सकेंगे। इसके अलावा ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत आपराधिक मामला भी दर्ज कराने का प्रावधान भी रहेगा।
ऑनलाइन दवाओं की बिक्री करने वाली कंपनियों को भी कानून के दायरे में लाने के लिए ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया गया है। जिसके तहत कंपनियों को औषधि विभाग में रजिस्ट्रेशन तथा सूचना तकनीक अधिनियम की पालना करनी होगी। इन प्रावधानों का अध्ययन किया जा रहा है। -अजय फाटक, ड्रग कंट्रोलर सैकंड