प्राइवेट स्कूलों में फीस तय करने के लिए पहली बार बनी गाइडलाइन

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नई दिल्ली। देश में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए पहली बार फीस तय करने का रेग्युलेशन बनाया गया है। जिसमें किन फैक्टर्स को ध्यान में रखकर फीस तय की जाएगी इसे डिटेल में बताया गया है। इस रेग्युलेशन ड्राफ्ट को एचआरडी मिनिस्ट्री को भेजा जाएगा। ड्राफ्ट बनाने वाली चाइल्ड राइट्स बॉडी ने इसे अक्टूबर तक लागू करवा लेने की सिफारिश की है। साथ ही उम्मीद जताई है कि बच्चों के हित में राज्य सरकारें इसे लागू करवाएंगी।

फीस तय करने के लिए बनाए हैं इंडिकेटर और फैक्टर
देश में चाइल्ड राइट्स की शीर्ष इकाई नैशनल कमिशन फॉर प्रॉटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने यह रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क बनाया है। कमिशन मेंबर प्रियंक कानूनगो ने एनबीटी से बात करते हुए कहा कि इससे समानता आएगी और फीस के नाम पर बच्चों का शोषण खत्म होगा। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि राज्य सरकारें बच्चों के हित में इसे जल्द से जल्द लागू करवाएंगी। ड्राफ्ट में बताया गया है कि फीस तय करने की क्या प्रक्रिया होगी और क्या फैक्टर होंगे। इसमें कुछ कॉन्सटंट इंडिकेटर हैं और कुछ वेरिएबल इंडिकेटर।

तीन साल में होगा रिव्यू
हर जिले का इंडिकेटर अलग-अलग होगा। जिससे हर जिले के स्कूलों की फीस वहां के हिसाब से तय होगी। स्थायी इंडिकेटर में वहां का सर्कल रेट, प्रति व्यक्ति व्यय, महंगाई दर, रेट ऑफ डेप्रिशिएशन होगा। अस्थिर इंडिकेटर में स्कूल की सुविधा, स्टाफ की योग्यता, उनकी सैलरी, एक्स्ट्रा करिकुलर ऐक्टिविटी, स्टाफ के लिए सुविधा जैसे फैक्टर शामिल होंगे। इन फैक्टर के हिसाब से स्कूल अपनी फीस तय करेंगे।

फिर वह इसे जिले स्तर पर बनी रेग्युलेटरी कमिटी के पास भेजेंगे जो फीस फाइनल करेगी। इसके लिए राज्य स्तर पर एक सॉफ्टवेयर डिवेलप किया जाएगा ताकि इंडिकेटर भरने के बाद डिजिटल रूप से फीस की रेंज पता चल सके। फीस हर तीन साल में रिव्यू होगी। अगर किसी स्कूल को लगता है कि किन्हीं वाजिब वजहों से उसे पहले रिव्यू करना है तो वह अथॉरिटी में अपील कर सकते हैं।

6 स्तर पर होगी फीस
किसी भी प्राइवेट स्कूल में फीस 6 स्तर पर होगी। पहला स्तर नर्सरी और केजी की फीस का, दूसरा- पहली और दूसरी क्लास, तीसरा- तीसरी, चौथी, पांचवीं क्लास, चौथा- छठी सातवीं और आठवीं, पांचवां- नवीं और 10वीं क्लास का और छठा स्तर 11वीं और 12वीं क्लास का होगा।

इस रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क को ऐक्ट के हिसाब से बनाया है। कमिशन का कहना है कि राज्य सरकारें इसे ऐक्ट की तरह पास करवा कर लागू कर सकती हैं या फिर नोटिफाई कर सकती है। इसमें पैरंट्स टीचर्स असोसिएशन को भी पावर दी गई है।

फाइन से शुरू होकर नो-ऐडमिशन कटैगरी तक
ड्राफ्ट के मुताबिक अगर नियम लागू होने के बाद कोई स्कूल गलती करता है तो पहली गलती पर उस पर कुल राजस्व का एक पर्सेंट फाइन लगेगा। दूसरी गलती पर कुल राजस्व का 3 पर्सेंट और तीसरी गलती पर कुल राजस्व का 5 पर्सेंट फाइन लगेगा। चौथी गलती होने पर स्कूल को नो-ऐडमिशन कैटिगरी में डाल दिया जाएगा और वहां ऐडमिनिस्ट्रेटर बैठाया जाएगा। नो – ऐडमिशन कैटिगरी में स्कूल कोई भी नया ऐडमिशन नहीं कर सकेंगे। जब तक सब बच्चे पास नहीं हो जाते तब तक स्कूल चलेगा और उसके बाद स्कूल का रजिस्ट्रेशन कैंसल कर दिया जाएगा।