बेंगलुरु। नए कन्ज्यूमर प्रटेक्शन बिल के लागू होने पर ई-कॉमर्स कंपनियों को सख्त रेग्युलेशन के तहत काम करने की आदत डालनी पड़ेगी। इससे उनकी जवाबदेही बढ़ेगी और कस्टमर डेटा के इस्तेमाल को लेकर ई-पारदर्शिता भी बरतनी पड़ेगी। तीन दशक पुराने कानून को बदलने के लिए नया कन्ज्यूमर प्रटेक्शन बिल लाया जा रहा है।
ई-कॉमर्स सेक्टर में कन्ज्यूमर प्रटेक्शन एक्ट, 2018 के तहत कई बड़े बदलाव होंगे। इस कानून के लागू होने के बाद नकली और डिफेक्टिव सामान की बिक्री होने पर मार्केटप्लेस को जवाबदेह माना जाएगा। कंपनियों को बिजनेस डिटेल और सेलर एग्रीमेंट की जानकारी देनी पड़ेगी।
ऑनलाइन मार्केट प्लेस को ‘इलेक्ट्रॉनिक सर्विस प्रवाइडर’ माने जाने का प्रस्ताव आया है, जिस पर विवाद है। ई-कॉमर्स कंपनियों को डर है कि इससे कस्टमर के प्रति उनकी जवाबदेही काफी बढ़ जाएगी।
इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट में कहा गया है कि नेटवर्क सर्विस प्रवाइडर मध्यस्थ होते हैं, जबकि डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के दिशानिर्देशों में ऑनलाइन मार्केटप्लेस को टेक्नॉलजी प्लेटफॉर्म प्रवाइडर माना गया है। इसमें कहा गया है कि वे खरीदार और विक्रेता के बीच मध्यस्थ की भूमिका अदा करते हैं।
ई-कॉमर्स कंपनियों ने हाल में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय को लिखा था कि नई परिभाषा से उन्हें कामकाज करने में दिक्कत हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा था कि इस कानून की वजह से पैदा होने वाली मुश्किलों को दूर करने पर उन्हें पैसा भी खर्च करना पड़ सकता है।
लेटर में यह भी लिखा गया था, ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को ध्यान में रखते हुए ई-कॉमर्स के इंटरमीडियरी स्टेटस को लेकर तस्वीर साफ और जरूरी बदलाव करने की जरूरत है।’उन्होंने कहा था कि इस सेगमेंट से बड़ी संख्या में माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज व स्टार्टअप्स भी जुड़े हुए हैं।
इसलिए किसी भी तरह का बदलाव करते वक्त इसका ख्याल रखा जाना चाहिए। ऐमजॉन और स्नैपडील जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों के प्रतिनिधि और फिक्की और सीआईआई जैसे औद्योगिक संगठन ने डिपार्टमेंट सेक्रेटरी अविनाश के श्रीवास्तव से फरवरी में मुलाकात की थी।
उन्होंने इसमें अपील की थी कि इस सेक्टर को ओवर-रेग्युलेट करने की जरूरत नहीं है। नए रूल्स के बारे में पूछे गए सवालों का उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने जवाब नहीं दिया। वहीं, कन्ज्यूमर प्रटेक्शन बिल को कैबिनेट ने दिसंबर में मंजूरी दे दी थी और इसके अगले महीने इसे संसद में पेश किया गया था।
नए रूल्स में कहा गया है कि ई-कॉमर्स कंपनियों को अपने बिजनस के बारे में सारी जानकारियां देते हुए सेल्फ-डिक्लेयर्ड फॉर्म जमा करने होंगे। इसके लिए इन कंपनियों को मंत्रालय के पास रजिस्ट्रेशन भी कराना पड़ सकता है।