दिगम्बर जैन मंदिर विज्ञान नगर में आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज का संसघ मंगल प्रवेश
कोटा। दिगम्बर जैन मंदिर विज्ञान नगर में आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज का सोमवार को संसघ मंगल प्रवेश हुआ। मंदिर समिति के अध्यक्ष राजमल पाटोदी ने बताया कि आचार्य पुष्पदंत सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज का संसघ प्रातः विज्ञान नगर जैन मंदिर में मंगल प्रवेश हुआ।
मंदिर के द्वार पर सकल समाज एवं विज्ञान नगर मंदिर समिति के पदाधिकारियों ने पाद प्रक्षालन कर आर्चाय की अगवानी की। मंगल प्रवेश में सकल दिगम्बर जैन समाज समिति के अध्यक्ष विमल नान्ता महामंत्री, विनोद टोरड़ी, प्रकाश ठौरा, जे. के. जैन, विमल वर्धमान, यतीश खेड़ावाला, अनिल ठौरा, रीतेश सेठी, पारसमल सीए आदि कई गणमान्य समाज बन्धु उपस्थित रहे।मंत्री पी. के. हरसोरा ने बताया कि मंगल प्रवेश के बाद धर्म सभा आयोजित की गई।
प्रारम्भ में अष्ट द्रव्य से भक्ति भाव पूर्वक आचार्य की पूजन की गई। मंगलाचरण पारुल जैन ने किया। चित्र अनावरण दीप प्रज्जवलन एवं जिनवाणी विराजमान करने का सौभाग्य सुनील सरला कासलीवाल को मिला। सांयकाल आचार्य भक्ति का कार्यक्रम हुआ। नियमित प्रवचन विज्ञान नगर में प्रातः 8.45 पर होंगे। आचार्य श्री ने धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए आत्मावलोकन, आत्मसंयम और आत्म-शुद्धि की महत्ता को रेखांकित किया।
- निन्दा से बचें: दूसरों की निन्दा और बुराई में समय व्यर्थ करने के बजाय अपने जीवन और आत्मा की ओर ध्यान देना चाहिए।
- आत्मावलोकन की आवश्यकता: व्यक्ति अक्सर दूसरों की कमियों को देखता है, लेकिन अपनी आत्मा में झांकने का प्रयास नहीं करता। आत्मा में झांकना ही सच्चा आत्मज्ञान है।
- बुराईयों को त्यागें: जीवन से बुराईयों को दूर करने का प्रयास करें। यह न केवल जीवन को सुंदर बनाता है बल्कि व्यक्ति को आंतरिक शांति और आनंद प्रदान करता है।
- पुण्य और पाप का हिसाब: प्रतिदिन अपने कर्मों का लेखा-जोखा रखें। पुण्य को बढ़ाने के लिए भगवान और आत्मा से जुड़ने का प्रयास करें।
- आत्मा में भगवान का वास: बाहरी मंदिर में भगवान के दर्शन के साथ-साथ अपने भीतर के मंदिर में भगवान को महसूस करें। जो भीतर की ओर झांकता है, वही सच्चे सुख और आनंद को प्राप्त करता है।