कोटा। शहर में धीरे-धीरे कोचिंग सेंटरों और हॉस्टल के कारोबारों पर प्रभाव पड़ता दिख रहा है। यह जानकारी इससे जुड़े हितधारकों ने दी। उन्होंने इसके पीछे की वजह छात्रों द्वारा सुसाइड करना, कोचिंग सेंटर के लिए नए-नए मानकों का लागू होना और अन्य शहरों में बड़े-बड़े कोचिंग सेंटरों का लगातार होता विस्तार बताया गया है। इन कारणों से कोटा में कोचिंग सेंटरों और छात्रावासों के कारोबार में धीमी गति देखी जा रही है।
ऊपर बताए गए कारणों के चलते कोटा में छात्रों की संख्या में भारी कमी देखी गई है। छात्रों की संख्या 2 से 2.5 लाख से घटकर इस साल 85000 से 1 लाख के आस-पास रह गई है। इससे वार्षिक राजस्व 6500 से 7000 करोड़ रुपये से घटकर 3500 करोड़ रुपये रह गया है। इन झटकों के बावजूद इन कारोबारों से जुड़े लोग कोटा के कोचिंग मॉडल और इससे जुड़े माहोल को लेकर काफी आशावादी बने हुए हैं।
यूनाइटेड काउंसिल ऑफ राजस्थान इंडस्ट्रीज के जोनल चेयरपर्सन गोविंदराम मित्तल ने कहा कि कोटा का एजुकेशन सिस्टम और माहौल बेजोड़ है जो अगले सत्र में छात्रों को अपनी ओर वापस आकर्षित करेगा। इससे इस साल आई गिरावट की भरपाई हो जाएगी। उन्होंने कहा कि उद्योगपति वैकल्पिक अवसरों की तलाश में हैं और वे शहर में आईटी हब स्थापित करने की योजना बना रहे हैं, जो कि बेंगलुरु की तर्ज पर होगा।
गोविंदराम मित्तल ने कहा कि यहां के उद्योगपतियों ने कोटा में अपना आधार स्थापित करने के लिए बेंगलुरू स्थित कम्पनियों से संपर्क किया है। इन कम्पनियों की मंजूरी के बाद लोकसभा अध्यक्ष एवं कोटा-बूंदी के सांसद ओम बिरला के निर्देश पर आईटी सेक्टर के लिए भूमि चिन्हित कर ली गई है।
कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल ने कहा कि यहां कोचिंग सेंटर और हॉस्टल उद्योग निश्चित रूप से संकट में है। कुछ मालिक जिन्होंने लोन लेकर कई हॉस्टल बनाए हैं, उन्हें किश्तें चुकाने में दिक्कत आ रही है। इस संकट ने छात्रावास मालिकों को बुरी तरह प्रभावित किया है। शहर के 4500 छात्रावासों में से अधिकांश में 40 से 50 फीसदी तक की कमी आई है।
इस साल की शुरुआत में कर्नाटक सरकार ने एक विधेयक को मंजूरी दी थी, जिसमें निजी क्षेत्र में मैनेजमेंट से जड़े 50 फीसदी पद और 75 प्रतिशत बिना मैनेजमेंट वाले पद स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने की बात कही गई थी। इसकी आलोचना पूरी इंडस्ट्री जगत में हुई थी।