राज्य के 8 प्रमुख बिजलीघरों के हजारों अभियंता एवं कर्मचारियों द्वारा राज्य स्तरीय धरने को विफल करने के लिए प्रबंधन ने दिया वार्ता का न्यौता
कोटा। राज्य के सरकारी बिजलीघरों को विनिवेश के नाम पर निजी क्षेत्र को बेचने का मुद्दा गरमाने लगा है। दो बडे़ बिजलीघरों छबड़ा सुपर थर्मल एवं कालीसिंघ सुपर थर्मल के विनिवेश को राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के बाद टेंडर जारी होने से अभियंताओं, कर्मचारियों एवं श्रमिकों में गहरा आक्रोश है।
पिछले दो माह से राज्य के प्रत्येक बिजलीघर में जनांदोलन कर कोर कमेटी ने राज्य सरकार से अपील की कि 750 करोड़ रूपए के लाभ में चल रहे विद्युत उत्पादन निगम के संयंत्रों को बेचने की बजाय अधिक बिजली उत्पादन किया जाए। राजस्थान राज्य उत्पादन निगम (आरवीयूएन) संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा बुधवार को निजीकरण एवं विनिवेश के विरोध में जयपुर के विद्युत भवन मुख्यालय पर राज्यस्तरीय धरना प्रस्तावित था लेकिन निगम प्रशासन ने कोर कमेटी को धरना स्थगित कर पहले बातचीत के लिए बुलाया।
समिति के संजय जोशी, रवि प्रकाश विजय, घनश्याम शर्मा एवं गोविंद राजपुरोहित ने बताया कि कोर कमेटी का दल सीएमडी से वार्ता करेगा। साथ ही प्रत्येक बिजलीघर में निजीकरण के विरोध में सांकेतिक धरना दिया जाएगा।
इससे पहले राज्य स्तरीय धरने को लेकर कोटा, कालींसंध, छबड़ा व सूरतगढ सुपर थर्मल पावर स्टेशन तथा धौलपुर, रामगढ़, गिराल, माही बिजलीघरों से लगभग 2000 कर्मचारी एवं इंजीनियर्स ने एक दिन के आकस्मिक अवकाश का आवेदन किया था।, जिसमें चपरासी से लेकर अतिरिक्त मुख्य अभियंता स्तर तक के अधिकारी शामिल हैं।
मुख्य न्यायाधीश को भेजे मार्मिक पत्र
राज्य में निगम के सभी सरकारी बिजलीघरों से कर्मचारियों, अभियंताओं एवं उनके बच्चों ने राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को 1700 से अधिक पोस्टकार्ड लिखकर जनहित में विनिवेश के खिलाफ प्रसंज्ञान लेने की गुहार लगाई। कई बेटियों ने अपने पत्र में लिखा कि अच्छा कार्य करने वालों के साथ राज्य सरकार यह कैसा व्यवहार कर रही है।
वनिता, तान्या, मनीषा, अमिता ने लिखा- क्या सस्ती दरों पर अधिक बिजली पैदा करना अपराध है? हमारे पापा बहुत तनाव में हैं। आप न्याय कीजिए। आकांक्षा, अर्पिता, मधु, आरूषि व मोनिका ने लिखा- चालू बिजलीघरों को अचानक बंद करके सरकार क्या मैसेज दे रही है। हम पढ़ लिखकर भविष्य में कभी सरकारी सेवा में सर्विस नहीं करेंगे। आईआईटी कर रहे गौरव गर्ग ने लिखा कि निजी कंपनियों के दबाव में शर्तों में बदलाव कर देना न्यायसंगत नहीं है।
जनहित में पुनर्विचार हो
समिति ने मांग की कि राज्य विद्युत उत्पादन निगम के कालीसिंध तथा छबड़ा सुपर थर्मल की विनिवेश प्रक्रिया पर जनहित में पुनर्विचार किया जाए, अन्यथा निजी क्षेत्र की मनमानी से जनता को महंगी दरों से बिजली मिलेगी। इंटरनल ऑडिट रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए, जिसमे विनिवेश को गलत बताया गया है। विनिवेश के लिए कंसलटेंट मुंबई की अर्नेस्ट व यंग ऑडिट कम्पनी ने टेंडर प्रक्रिया में निजी कंपनियों के नियम व शर्तो को एकतरफा मंजूरी दे दी, क्योकि यही कम्पनी दोनों पक्षों की सलाहकार है। इसकी जांच की जाए।