कोटा। Aditya Sagar Maharaj: आदित्य सागर मुनिराज संघ ने जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में शनिवार को चातुर्मास के अवसर पर अपने नीति प्रवचन में कहा कि हमारे जीवन में दो अदृश्य शक्तियाँ पुण्य और पाप काम करती हैं।
जब पुण्य की शक्ति सक्रिय होती है, तो व्यक्ति को सुख और सफलता प्राप्त होती है, जबकि पाप की शक्ति से दुख और असफलता आती है। जीवन में सुकून और संतोष पाने के लिए पुण्य की शक्ति को बढ़ाना आवश्यक है। इसके लिए तीन उपाय बताए गए हैं।
- भगवान और गुरु की भक्ति: परमात्मा और गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा और भक्ति से उच्च स्तर का पुण्य प्राप्त होता है, जैसे हाई-वोल्टेज चार्जर से तुरंत शक्ति मिलती है।
- शांत और संतुलित मन: व्यक्ति के चित्त में शांति होनी चाहिए। जो व्यक्ति हर घटना में संतुलन बनाए रखता है, वह सहजता से पुण्य अर्जित करता है।
- दया और अनुकंपा: परोपकार और दया के भाव से पुण्य की वृद्धि होती है। दूसरों की मदद करने से पुण्य आत्मा बनते हैं।
उन्होने उदाहरण स्वरूप बताया कि जैसे बिजली के वोल्टेज में अंतर होता है, वैसे ही परमात्मा और गुरु की भक्ति उच्च शक्ति का स्रोत है। यह हमारे जीवन को तुरंत प्रभावित करती है। बशर्ते हमारा कनेक्शन (श्रद्धा) सही हो। राम ने युद्ध जीतने के बाद भी संयम रखा। , वैसे ही हमें भी जीवन में मध्यस्थ भाव रखना चाहिए। जब मन शांत होता है, तभी पुण्य की वृद्धि होती है और जीवन में सफलता मिलती है। जैसे स्थिर जल में ही प्रतिबिंब स्पष्ट दिखता है, वैसे ही शांत मन में ही पुण्य का प्रभाव दिखता है।
मंच संचालन पारस कासलीवाल एवं संजय सांवला ने किया। इस अवसर पर सकल दिगम्बर जैन समाज के कार्याध्यक्ष जे के जैन, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज आदित्य, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, ऋद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, पारस कासलीवाल, पारस लुहाड़िया, दीपक नान्ता, पीयूष बज, दीपांशु जैन, राजकुमार बाकलीवाल, जम्बू बज, महेंद्र गोधा, पदम बाकलीवाल, अशोक पापड़ीवाल सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।