कोटा के राष्ट्रीय दशहरा मेले में जीवंत हुईं सारागढ़ी किले की विजयगाथा
कोटा। Gatka Program: राष्ट्रीय दशहरा मेला शनिवार को सिखों की संगत पा निहाल हो गया। नीले वेशधारी युवा और बच्चों ने सिख विरासत की पारंपरिक युद्ध कला “गतका” का हैरतअंगेज प्रदर्शन किया। कभी तलवारें चमकीं तो कभी फरसे खड़के।
दशहरा मैदान का विजयश्री रंगमंच सिख संगत के शौर्य और साहस का गवाह बना। रंगमंच पर वीर खालसा ग्रुप के द्वारा ‘गतका’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें वीरता, शौर्य, पराक्रम और रोमांच का अद्भुद संगम देखने को मिला। इस दौरान बोले सो निहाल.. सस्त्री अकाल.. वाहे गुरुजी दा खालसा.., वाहे गुरुजी दी फतह.. गूंज उठा। ‘गतका’ (Gatka Martial Art) की शुरुआत अरदास से हुई।
इसके बाद तो नॉन स्टॉप परफॉर्मेंस का ऐसा धमाल मचा कि गतका मंचन खत्म होने तक हजारों लोगों की भीड़ से भरे मैदान में कोई भी टस से मस नहीं हुआ। पैंतरा के तहत् सिख वीरों ने अपने शस्त्र गोलिया, फरीसोटी, चक्कर, बैत, डांग, गुर्ज, कीलों के पट्टे, कृपाण को सलामी दी गई।
कई मीटर लंबी और खासी मोटी गतका छड़ें जब चली तो उनकी खनकार पूरे मंच पर ऐसी सुनाई दी कि रौंगटे ही खड़े हो गए। भारी भरकम तलवारों की मोटी मोटी मूठे थामे, पंजाबी धागों की कशीदाकारी से सजी उनमें बंधे रूमाल अलग ही जोश और जुनून जगा रहे थे। 50 मिनट तक लगातार एक के बाद एक वार प्रतिवार करते खिलाड़ी और उसका जवाब देते युवा नया ही जोश जगा रहे थे।
एक घंटे से ज्यादा चले गतका कार्यक्रम में कई मर्तबा ऐसे मौके आए जब दर्शकों का न रोंगटे खड़े हुए बल्कि कलेजा तक मुंह को आ गया। वीर खालसा गतका ग्रुप के वरिष्ठ सदस्य ने जब आंखों पर पट्टी बांध कर पांच युवा सदस्यों की गर्दनों पर रखा केला तेज धार तलवार से काटा तो पूरा दशहरा मैदान जो बोले सो निहाल के जयकारों से गूंज उठा।
इसके बाद जैसे ही मच पर सारागढ़ी किले के युद्ध में विजय का नाट्य रूपांतरण किया गया तो हर सीने में शोले कौंध रहे थे, हर भुजा फड़क रही थी और हर आंख नम हो चली। कार्यक्रम के आखिर में जैसे ही सिंह इज किंग की धुनों पर ग्रुप ने प्रस्तुति दी पूरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा और निशान साहेब के झंडे लहरा उठे।