कोटा। चंद्र प्रभु दिगंबर जैन समाज समिति की ओर से श्रमण श्रुतसंवेगी आदित्य सागर मुनिराज संघ ने चातुर्मास के अवसर पर शनिवार को जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में अपने नीति प्रवचन जीवन में पुण्य और पाप के महत्व को उजागर किया।
उन्होंने कहा कि जब जीवन में समस्याएं आती हैं, तो हम उन्हें व्यक्तिगत रूप से लेते हैं, लेकिन वे हमारे कर्मों का परिणाम होती हैं। अच्छे कार्यों का श्रेय दूसरों को देते हैं, परंतु हमें खुद को भी श्रेय देना चाहिए। क्योंकि यह हमारे पुण्य का उदय होता है। वर्तमान समय में लोग पाप के साधनों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जबकि पुण्य के साधन कम हो रहे हैं।
आदित्य सागर मुनिराज ने कहा कि हमें राम के मार्ग पर चलकर पुण्य का संग्रह करना चाहिए, न कि रावण जैसे कार्यों में लिप्त होना चाहिए। जीवन में सही दिशा चुनना और अपने कर्मों पर ध्यान देना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आज के समय में लोग पुण्य के बजाय पाप के साधनों की तलाश में ज्यादा लगे हुए हैं। पहले के समय में लोग सीमित साधनों में संतुष्ट रहते थे, लेकिन अब हर दिन कुछ नया पाने की इच्छा लोगों को पाप की ओर धकेल रही है। इसके बावजूद कुछ लोग अभी भी पुण्य के साधनों में लगे हुए हैं। हमारे जीवन का उद्देश्य केवल अपना काम बनाना नहीं होना चाहिए, बल्कि यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारे कारण किसी और का नुकसान न हो।
उन्होंने कहा कि हम अक्सर अपने दिन को संवारने में लगे रहते हैं, जबकि दूसरों का दिन संवारने की ओर ध्यान नहीं देते। उदाहरण के तौर पर, रास्ते में ठंड में खड़ी गाय की मदद करना या सिग्नल पर गुब्बारे बेचते बच्चे की मदद करना, ये छोटे कार्य भी पुण्य का संग्रह करते हैं। राम ने अपने वनवास के दौरान कई लोगों का उद्धार किया, उन्होंने केवल खुद के लिए नहीं बल्कि दूसरों के भले के लिए भी काम किया।
इसी प्रकार, हमें अपने जीवन में स्वार्थ छोड़कर दूसरों के लिए कुछ अच्छा करने का प्रयास करना चाहिए। अगर हम दूसरों को खुश करने की कोशिश करेंगे, तो उनके आशीर्वाद हमें जीवन में ऊंचाइयों तक पहुंचाएंगे। यदि आपकी इच्छाएं बड़ी हैं, तो आपको उतना ही मेहनत भी करनी होगी। केवल आकांक्षाएं रखना पर्याप्त नहीं है। पुरुषार्थ के बिना आपको सफलता नहीं मिलेगी। छोटे-छोटे कर्मों से पुण्य और पाप दोनों का संग्रह होता है।
यह नीति बताती है कि अगर आपके पास पुण्य नहीं है, तो चाहे कितनी भी बड़ी सेना या समर्थन आपके पास हो, आप जीत नहीं पाएंगे। कृष्ण ने बुद्धि से कौरवों को हराया, लेकिन अंत में एक छोटे से तीर ने उनका अंत कर दिया। यह इस बात का प्रतीक है कि जब पुण्य समाप्त हो जाता है, तो जीवन में सब कुछ रुक जाता है। जैसे मोबाइल का बैलेंस खत्म होने पर इंटरनेट नहीं चलता, वैसे ही पुण्य खत्म होने पर जीवन की प्रगति रुक जाती है।
इस अवसर पर सकल दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष विमल जैन नांता, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज आदित्य, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, ऋद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, पारस कासलीवाल, पारस लुहाड़िया, दीपक नान्ता, पीयूष बज, दीपांशु जैन, राजकुमार बाकलीवाल, जम्बू बज, महेंद्र गोधा, पदम बाकलीवाल, अशोक पापड़ीवाल सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।