जीवन में दुखों का सबसे बड़ा कारण ही बंधन है: आदित्य सागर मुनिराज

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कोटा। जैन धर्म के पर्युषण पर्व के तहत चंद्र प्रभु दिगंबर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आध्यात्मिक श्रावक साधना संस्कार शिविर में रविवार को आदित्य सागर मुनिराज ने तत्त्वार्थसूत्र रहस्य बन्ध के महत्व पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि जीवन में दुखों का कारण ही बंधन है। आप की चाह और इच्छा ही आपको कष्ट पहुचाती है। उन्होंने श्रावकों को बंध के प्रकार, किस बंधन से किस प्रकार का दोष लगता है आदि के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि जीवन में जितने हलके रहोगे, उतने ऊंचे जाओगे और अधिक वजन या लोड लेकर चलोगे तो ऊंचा उठना कठिन होगा। जिन कारणों से दुख पैदा होता है, जिन भावों से दुख आए उन्हें छोड़ दो।

इस अवसर पर उन्होंने श्रावकों के प्रश्नों का उत्तर भी दिया। एक बालिका के प्रश्न माता—पिता व गुरू में कौन बडा होता है के उत्तर में गुरूदेव ने कहा कि मां प्रथम गुरू होती है और कंधे पर लेकर चलता है वह आपको अपने आप से अधिक उंचा देखना चाहता है। उनके कारण आप इस संसार में आए हो इसलिए वह बड़े हैं।

गुरू इस संसार से पार ले जाता है, इसलिए इस दृष्टि से गुरू का स्थान बड़ा है। उन्होने माला फेरने के तरीकों व नियमों पर भी चर्चा की। गुरूदेव ने व्यसन करने व धार्मिक क्रिया करने वालों को कहा कि आप व्यसन छोडकर आगे बढ़ें। धार्मिक क्रिया का जो लाभ मिलना है, वह मिलेगा, परन्तु पुदगल पाप भी नष्ट करने होंगे। इसलिए व्यसनों का त्याग करें।

इस अवसर पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, ऋद्धि-सिद्धि जैन मंदिर के अध्यक्ष राजेंद्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़ सहित कई लोग उपस्थित रहे।