सरकार का विदेशों से खाद्य तेलों के आयात पर आयात शुल्क बढ़ाने का विचार

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इंदौर। खरीफ सीजन की प्रमुख तिलहन फसल- सोयाबीन की बिजाई लगभग समाप्त हो चुकी है और अगले महीने (सितम्बर) से इसकी अगैती बिजाई वाली फसल की छिटपुट कटाई-तैयारी आरंभ होने वाली है।

सोयाबीन का थोक मंडी भाव काफी नीचे आ गया है और अक्टूबर से जब नए माल की जोरदार आवक शुरू होगी तब इसकी कीमतों पर दबाव और भी बढ़ सकता है। केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2023-24 सीजन के 4600 रुपए प्रति क्विंटल से 6.3 प्रतिशत बढ़ाकर 2024-25 सीजन के लिए 4892 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है जबकि थोक मंडी भाव इससे काफी पीछे है।

मंत्रालय को आशंका है कि यदि विदेशों से सस्ते सोया तेल का विशाल आयात जारी रहा तो घरेलू प्रभाग में किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की वापसी सुनिश्चित करना मुश्किल हो जाएगा। इसे ध्यान में रखकर उसने खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में वृद्धि करने का सुझाव दिया है जिस पर गंभीरतापूर्वक विचार किए जाने तथा जल्दी ही कोई निर्णय लिए जाने की संभावना है।

हालांकि कृषि मंत्रालय ने इसका सुझाव नहीं दिया है कि खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में ठीक-ठाक कितनी बढ़ोत्तरी होनी चाहिए लेकिन इतना अवश्य कहा है कि खाद्य तेलों का अंतिम आयात खर्च घरेलू प्रभाग में किसी भी तिलहन की प्रोसेसिंग से प्राप्त खाद्य तेल के लागत व्यय से नीचे नहीं होना चाहिए। स्वदेशी खाद्य तेल उद्योग भी लगातार इसकी मांग कर रहा है।

मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्तमान खरीफ सीजन में 20 अगस्त 2024 तक राष्ट्रीय स्तर पर सोयाबीन का उत्पादन क्षेत्र बढ़कर 125.11 लाख हेक्टेयर के शीर्ष स्तर पर पहुंच गया जो पिछले साल की समान अवधि के बिजाई क्षेत्र 123.85 लाख हेक्टेयर से 1.26 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। इससे पूर्व की समान अवधि में सोयाबीन का रकबा वर्ष 2022 में 119.54 लाख हेक्टेयर तथा वर्ष 2021 में 19.04 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया था।