नई दिल्ली। फाइनैंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने कहा कि भारत फिस्कल कंसॉलिडेशन की राह पर चल रहा है और दूसरे क्वॉर्टर में देश की इकनॉमिक ग्रोथ की जो पिक्चर रही है, उसके साथ ग्रोथ में गिरावट का ट्रेंड पलट गया है। जेटली ने फाइनैंशल रेजॉलूशन ऐंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल (एफआरडीआई बिल) के प्रावधानों से जुड़ा डर दूर करने की कोशिश भी की।
उन्होंने कहा कि सरकार फाइनैंशल इंस्टिट्यूशंस में पब्लिक के डिपॉजिट्स की पूरी हिफाजत करेगी। फाइनैंस मिनिस्ट्री के एक बयान के मुताबिक, बजट से पहले अर्थशास्त्रियों के साथ चर्चा में जेटली ने कहा, ‘हम फिस्कल कंसॉलिडेशन के रोडमैप के मुताबिक चल रहे हैं।
इसके तहत फिस्कल डेफिसिट 2015-16 में जीडीपी के 3.9 पर्सेंट और 2016-17 में 3.5 पर्सेंट पर था। उसे मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 3.2 पर्सेंट पर रोकने का लक्ष्य बजट में तय किया गया है।’ कुछ हलकों में चिंता जताई गई है कि सरकार वित्त वर्ष 2018 के लिए फिस्कल डेफिसिट के टारगेट से चूक सकती है।
अप्रैल-अगस्त के दौरान फिस्कल डेफिसिट मौजूदा वित्त वर्ष के लिए बजट अनुमान के 96.1 पर्सेंट पर पहुंच गया था। हालांकि प्रधानमंत्री की इकनॉमिक अडवाइजरी काउंसिल के मेंबर रथिन रॉय ने कहा कि सरकार फिस्कल डेफिसिट टारगेट हासिल कर लेगी। उन्होंने कहा, ‘इसके संबंध में एक राजनीतिक प्रतिबद्धता है। मुझे भरोसा है कि वे यह टारगेट हासिल कर लेंगे।’
मिनिस्ट्री के बयान के मुताबिक, जेटली ने कहा, ‘खर्च को तर्कसंगत बनाकर, सरकारी खर्च में लूपहोल्स को डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसपर और पब्लिक फाइनैंशल मैनेजमेंट सिस्टम के जरिए दूर कर और रेवेन्यू बढ़ाने के इनोवेटिव कदमों के जरिए हमने फिस्कल टारगेट्स हासिल किए हैं।’
एफआरडीआई बिल के बारे में जेटली ने कहा कि इस ड्राफ्ट लॉ के प्रावधानों के बारे में अफवाहें फैलाई जा रही हैं। जेटली ने कहा कि सरकारी बैंकों में 2.11 लाख करोड़ रुपये लगाने के सरकार के प्लान से ये बैंक मजबूत होंगे और किसी भी बैंक के फेल होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
जेटली ने कहा कि अगर ऐसी कोई स्थिति पैदा होती है तो सरकार कस्टमर्स के डिपॉजिट्स की ‘पूरी हिफाजत’ करेगी। उन्होंने कहा, ‘इस संबंध में सरकार की सोच बिल्कुल साफ है।’ एफआरडीआई बिल 2017 को अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था और उसे बाद में संसद की ज्वाइंट कमेटी के पास भेज दिया गया था। जेटली ने कहा, ‘कमेटी की जो भी सिफारिश होगी, सरकार उस पर विचार करेगी।’
इस बिल का मकसद एक फ्रेमवर्क बनाना है, जिसके जरिए बैंकों, इंश्योरेंस कंपनियों, नॉन-बैंकिंग फाइनैंशल कंपनियों और स्टॉक एक्सचेंजों जैसे फाइनैंशल इंस्टिट्यूशंस की इनसॉल्वेंसी की किसी भी स्थिति में निगरानी की जा सकेगी। ड्राफ्ट लॉ में बेल-इन क्लॉज की कुछ हलकों में आलोचना हुई है।
इस बिल में एक रेजॉलूशन कॉर्पोरेशन बनाने का प्रस्ताव किया गया है, जो प्रोसेस पर नजर रखेगा और ‘लायबिलिटीज को राइट डाउन’ करते हुए बैंकों को दिवालिया होने से बचाएगा। ‘लायबिलिटीज को राइट डाउन’ करने की व्याख्या कुछ लोगों ने बेल-इन के रूप में की है।