Health: गर्भाशय के कैंसर और पेल्विक में दर्द का इलाज हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी

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कोटा। हिस्टेरेक्टॉमी एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें महिलाओं का गर्भाशय सर्जरी की मदद से निकाल दिया जाता है। ये ऑपरेशन कई सारी प्रॉब्लम्स की वजह से किया जा सकता है, जिसका उनके शरीर और मन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ सकता है। इस सर्जरी के बाद महिलाएं नेचुरली प्रेगनेंट हो सकती हैं और उनके पीरियड्स भी बंद हो जाते हैं।

गर्भाशय में कैंसर, गर्भाशय में सिस्ट जैसी समस्याओं के चलते इस सर्जरी की जरूरत पड़ती है। इस सर्जरी के बारें में और विस्तार से जानने के लिए हमने नोएड में कोटा की जनि मानी गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. मंजू गुप्ता से बात की, जिन्होंने कई जरूरी जानकारियां दी। जान लें आप भी इसके बारे में।

हिस्टेरेक्टॉमी कितने प्रकार की होती है?
हिस्टेरेक्टॉमी के कई प्रकार हैं। हर एक में रिप्रोडक्टिव सिस्टम का कौन सा अंग निकाला जा रहा है और साथ ही उसकी समय सीमा अलग-अलग होती है।

टोटल हिस्टेरेक्टॉमी
इसमें गर्भाशय ग्रीवा सहित पूरे गर्भाशय को निकाल दिया जाता है। यह सबसे कॉमन है।

सबटोटल या पार्शियल (आंशिक) हिस्टेरेक्टॉमी
इसमें गर्भाशय के ऊपरी हिस्से को निकाला जाता है, लेकिन गर्भाशय ग्रीवा को अपने स्थान पर ही रहने दिया जाता है।

रेडिकल हिस्टेरेक्टॉमी
गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा, योनि का हिस्सा और उसके आस-पास के टिशूज को निकाला जाता है। यह सर्जरी कैंसर जैसी गंभीर स्थिति में किया होता है।

हिस्टेरेक्टॉमी के साथ सैलपिंगो ओओफेरेक्टॉमी
गर्भाशय के साथ-साथ एक या दोनों अंडाशय और फेलोपियन ट्यूब को निकाल दिया जाता है।

हिस्टेरेक्टॉमी करवाने की सलाह
कई सारी बीमारियों में हिस्टेरेक्टॉमी करवाने की सलाह दी जाती है, जिनमें शामिल हैं:

यूटेराइन फाइब्रॉयड: गर्भाशय में कैंसरस सेल्स के बढ़ने की वजह से ज्यादा ब्लीडिंग, दर्द और प्रेशर की समस्या हो सकती है। तब डॉक्टर इस सर्जरी की सलाह देते हैें।

एंडोमेट्रियोसिस: यह एक ऐसी समस्या है जिसमें गर्भाशय के समान ही टिशूज उसके बाहर विकसित होने लगते हैं, जिसकी वजह से दर्द और अनियमित रूप से ब्लीडिंग होती रहती है।

यूटेराइन प्रोलैप्स: पेल्विक के सतह की मांसपेशियां कमजोर होने से गर्भाशय, योनि मार्ग की ओर खिसक जाता है, इस कंडीशन में भी यह सर्जरी जरूरी हो जाती है।

पेल्विक में होने वाला क्रॉनिक दर्द: पेल्विक वाले हिस्से में तेज दर्द होता है, जिस पर दवा या कोई अन्य उपचार का भी जब असर नहीं होता, तो यह सर्जरी करवानी पड़ती है।

कैंसर: गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा या ओवरी का कैंसर होने पर भी यह सर्जरी करवाना ही ऑप्शन बचता है।

सर्जरी के तरीके
सर्जरी की कई अलग-अलग विधियों के द्वारा हिस्टेरेक्टॉमी की प्रक्रिया की जा सकती है। हर एक तरीके का चुनाव, मरीज की बीमारी पर निर्भर करता है।

पेट की हिस्टेरेक्टॉमी
गर्भाशय को हटाने के लिए पेट के निचले हिस्से में एक चीरा लगाया जाता है और इसके माध्यम से गर्भाशय निकाल लिया जाता है।

योनि की हिस्टेरेक्टॉमी
वजाइना में चीरा लगाकर गर्भाशय को हटाया जाता है। इसमें बाहरी कोई चीरा नहीं लगता। यूट्रस हटाने के बाद वजाइना के अंदर ही ऐसे टांके लगाए जाते हैं, जो थोड़ी दिनों में घुल जाते हैं। इसमें रिकवरी जल्दी होती है।

लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी
आज के समस में सबसे ज्यादा इसी सर्जरी का इस्तेमाल किया जा रहा है। पेट में एक छोटा-सा चीरा लगाया जाता है और लेप्रोस्कोप की मदद से गर्भाशय को निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में भी रिकवरी जल्दी होती है और ऑपरेशन के बाद दर्द भी कम होता है।

रोबोटिक-लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी
ये लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी की तरह ही है, लेकिन रोबोट की मदद से की जाती है और इसमें काफी सटीकता से काम पूरा होता है।

हिस्टेरेक्टॉमी के बाद बदलाव
गर्भाशय के निकल जाने के बाद महिलाओं में कई तरह के शारीरिक तथा भावनात्मक बदलाव होते हैं।

मासिकचक्र में होने वाले बदलाव
हिस्टेरेक्टॉमी के बाद महिलाओं के पीरियड्स बंद हो जाते हैं। ऐसे में उन महिलाओं को काफी राहत मिलती है, जो पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा ब्लीडिंग और दर्द से गुजर रही होती हैं।

हॉर्मोन में होने वाले बदलाव
गर्भाशय निकलने के बाद शरीर मेनोपॉज की अवस्था में चला जाता है, चाहे मरीज की उम्र कितनी ही कम क्यों न हो। जिसके चलते ज्यादा गर्मी, रात को ज्यादा पसीना, वजाइनल ड्राईनेस और मूड स्विंग जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं।

शारीरिक बदलाव
कुछ महिलाओं को यौन क्रिया में बदलाव महसूस हो सकता है, जैसे लिबिडो का कम होना या योनि में सूखापन। हालांकि, कुछ महिलाएं दर्द या रक्तस्राव के ना होने पर सेक्स को एन्जॉय भी करती हैं।

भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक प्रभाव
हिस्टेरेक्टॉमी के बाद भावनात्मक प्रभाव अलग-अलग तरह के होते हैं। कुछ महिलाओं को राहत महसूस होती है खासकर जब क्रॉनिक दर्द या ब्लीडिंग में आराम मिल जाता है। वहीं कई महिलाएं मां न बन पाने के बारे में सोच-सोचकर कर डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं।

रिकवरी तथा जीवनशैली में बदलाव
हिस्टेरेक्टॉमी के प्रकार पर रिकवरी का समय निर्भर करता है। पेट की हिस्टेरेक्टॉमी में स्वस्थ होने में लंबा वक्त लगता है(6-8 हफ्ते), वहीं वजाइनल हिस्टेरेक्टॉमी और लेप्रोस्कोपिक प्रक्रियाओं में रिकवरी में कम समय लगता है (2-4 हफ्ते)।