कोटा। आरकेपुरम जैन मंदिर में मुनि अप्रमितम सागर द्वारा श्रावकों को जिनवाणी सुनाई गई। उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से कहा कि इस संसार में साधु बनो या ना बनो, योगी बनो या ना बनो पर उपयोगी अवश्य बनें। मनुष्य का जीवन अल्प होता है। इसमें अपने उद्देश्य को ज्ञात कर उसे पूरा करने में समय लगाएं।
उन्होंने कहा कि रात में सोते समय णमोकार मंत्र का उच्चारण किया है तो आपकी शुभरात्रि और यदि सुबह होकर आप मंदिर आकर भगवान महावीर के दर्शन करते हो तभी आपकी गुड मॉर्निंग अर्थात सुप्रभात संभव है। क्योकि दिन हमारा है, परन्तु इसे बनाना वाला दूसरा है। इस अवसर पर उन्होंने अपने जीवन के अनुभव से भी जीवन जीने की राह बताई।
मुनि अप्रमितम सागर ने माता-पिता की महिमा बताते हुए कहा कि गुरु की वजह से हमें संसार में पहचान मिलती है। हमें दीक्षा व शिक्षा प्राप्त होती है। हमें अपने जीवन में माता-पिता व गुरुओं के सदैव आभारी रहना चाहिए।
इस दौरान मुनि श्री अप्रमित सागर जी का जन्मोत्सव भी मनाया गया। इस अवसर पर जैन समाज के राजमल पाटौदी, विनोद टोरडी, कार्याध्यक्ष जेके जैन, अंकित जैन, अनूज जैन, पारस जैन सहित जैन समाज के कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
मन को स्वस्थ करते गुरू
चर्या शिरोमणि आचार्य विशुद्ध सागर महाराज के शिष्य आदित्य सागर महाराज ससंघ ने भी अपने उपदेश के माध्यम से श्रोताओं को संमार्ग की राह दिखाते हुए कहा कि जिसे आपने अपना गुरू बनाया है उसे मन की पूर्ण बात बता दें। गुरू ही मन का फस्टेड करते हैं। मन की बीमारी का प्राथमिक इलाज गुरू ही करता है और मन स्वस्थ बनाता है। जीवन में गुरू ही होता है जो आपके व्यक्त्वि को पूर्ण रूप से समझाता है।