Johar Bai Talab: जीर्णोद्धार की बाट जोहते बदहाली के आंसू बहा रहा जौहर बाई तालाब

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इंटेक ने की नांता क्षैत्र के जीर्णशीर्ण तालाबों के सौंदर्यकरण की मांग, प्रतिनिधिमण्डल ने किया दौरा

कोटा। Johar Bai Talab Nanta: कोटा के उपनगरीय क्षेत्रों में जीर्ण शीर्ण अवस्था में बदहाल हो रहे तालाबों को निखारने की मांग करते हुए इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हैरिटेज (इंटेक) के प्रतिनिधिमण्डल ने नांता क्षैत्र के तालाबों का दौरा किया।

प्रतिनिधिमण्डल ने क्षैत्र के जौहर बाई का तालाब (सगस जी महाराज), मेंढकी पाल तालाब और अभेड़ा तालाब का दौरा किया। उन्होंने रियासतकालीन तालाबों के पुनर्निमाण को लेकर मुख्यमंत्री, ऊर्जा मंत्रालय, यूडीएच मंत्रालय, पर्यटन मंत्रालय को पत्र लिखा है।

इंटेक के कन्वीनर निखिलेश सेठी तथा को- कन्वीनर बहादुर सिंह हाड़ा ने बताया कि पर्यटन, पर्यावरण एवं वन्यजीव समेत बहुउपयोगी समझे जाने वाले इन तालाबों को, उदयपुर की झीलों की तर्ज पर विकसित किया जाना चाहिए। प्रोजेक्ट हेड अनिल शर्मा ने बताया कि जौहर बाई का तालाब 80-90 के दशक में, फ्लाई ऐश की समस्या की बलि चढ़ गया। यहां फ्लाईऐश को डंप किया जाता रहा।

अब इस फ्लाईऐश से मोटा मुनाफा होने लगा तो राख तो उठा ली, लेकिन तालाब अपनी दयनीय बदहाल स्थिति पर आज भी आंसू बहा रहा है। यह तालाब प्रकृति के ताबड़तोड़ दोहन का जीता जागता उदाहरण है। उन्होंने बताया कि अब थर्मल प्रशासन से मिलकर इस तालाब के सौंदर्यीकरण की मांग की जाएगी।

उन्होंने कहा कि प्राचीन तालाब हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं। इन्हें बचाने के लिए सरकार को आगे आना चाहिए। इन तालाबों को निखारने के लिए इंटेक की ओर से जनआन्दोलन शुरु किया जाएगा। जिसके लिए प्रोजेक्ट हेड अनिल शर्मा, प्रो. प्रह्लाद दुबे, बृजेश विजयवर्गीय, आर्किटेक्ट ज्योति सक्सेना, सदस्य आदित्य सेठी की टीम बनाई गई है।

रियासतकालीन हैं तालाब
निखिलेश सेठी ने बताया कि नांता क्षैत्र में 9 तालाब थे। जिनका निर्माण 17वीं शताब्दी में कराया गया था। इनमें से केवल 3 का ही अस्तित्व बचा है। जौहर बाई तालाब का निर्माण झाला जालिम सिंह ने कराया था। मेंढकी तालाब के निर्माण मवेशियों को पानी पिलाने के लिए किया जाता था। ये तालाब पानी का बड़ा स्रोत रहे हैं।

मगरमच्छों को नाम से बुलाते थे महाराव उम्मेद सिंह
अभेड़ा स्थित करणी माता सिद्ध आश्रम के तालाब का जीर्णोद्धार अंतिम बार महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय ने कराया था। यहां मौजूद मगरमच्छों को महाराव उम्मेदसिंह कालिया और धोलिया नाम पुकारकर बुला लेते थे। इस तालाब की भराव क्षमता 20 फीट तक है। ऐसे में पर्यटन गतिविधियों के लिए यह तालाब उपयुक्त है।