जयपुर। देश के पश्चिमी प्रान्त- राजस्थान में चालू माह (फरवरी) के प्रथम सप्ताह में हुई बारिश से रबी फसलों को फायदा हुआ और इसका उत्पादन बेहतर होने की उम्मीद बढ़ गई।
व्यापार विश्लेषकों का मानना है कि इस वर्षा से रबी फसलों के उत्पादन में 5 से 15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो सकती है। उल्लेखनीय है कि राजस्थान देश में सरसों तथा जौ का सबसे प्रमुख उत्पादक प्रान्त है जबकि वहां गेहूं एवं चना का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता है। वह केन्द्रीय पूल में गेहूं का अच्छा योगदान देता है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार अगर राजस्थान में अगले 10-15 दिन के अंदर एक और बारिश हो जाती है तो रबी फसलों के उत्पादन में और भी बढ़ोतरी होने की उम्मीद बन जाएगी लेकिन उसके बाद यदि भारी वर्षा हुई तो फसलों को नुकसान हो सकता है।
जयपुर के एक कारोबारी का कहना है कि हाल की वर्षा गेहूं एवं जौ की फसल के लिए काफी लाभदायक साबित हो रही है और इसके उत्पादन में 10-15 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है।
अगले महीने (मार्च) से राजस्थान में इन दोनों फसलों की कटाई-तैयारी आरंभ होने वाली है और ऐसी स्थिति में अगले 10 दिनों के अंदर एक या दो बारिश हो जाए तो फसलों की हालत काफी बेहतर हो जाएगी। लेकिन उसके बाद की वर्षा हानिकारक होगी।
राजस्थान कृषि विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि चालू रबी सीजन के दौरान राज्य में 27.80 लाख हेक्टेयर से कुछ अधिक क्षेत्र में गेहूं की बिजाई हुई और इसका कुल उत्पादन 1,04,15151 टन पर पहुंच सकता है।
समीक्षकों के अनुसार हाल की बारिश के कारण चना के उत्पादन में कम से कम 5 प्रतिशत का इजाफा होने के आसार हैं। वहां फरवरी के अंत से इस फसल की कटाई-तैयारी शुरू हो सकती है जबकि मार्च में इसकी रफ्तार काफी बढ़ जाएगी।
फरवरी में होने वाली वर्षा चना की फसल के लिए लाभदायक होगी। कृषि विभाग के अनुसार राजस्थान में इस बार चना का बिजाई क्षेत्र 19.70 लाख हेक्टेयर के करीब रहा जबकि इसका उत्पादन 23 लाख टन होने का अनुमान है।
जहां तक सरसों की बात है तो इसके एक अग्रणी व्यापारी एवं मरुधर ट्रेडिंग एजेंसी, जयपुर के प्रबंध निदेशक अनिल चतर ने कहा है कि फरवरी की वर्षा से फसल की उपज दर में सुधार होगा और सरसों से तेल की रिकवरी दर बढ़ जाएगी।
इसमें 1-2 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। राजस्थान में सरसों का क्षेत्रफल इस बार करीब 37.50 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया जबकि इसका उत्पादन बढ़कर 62.30 लाख टन पर पहुंचने का अनुमान राज्य सरकार ने लगाया है। राष्ट्रीय स्तर पर सरसों के कुल उत्पादन में अकेले राजस्थान का योगदान 45-49 प्रतिशत के बीच रहता है।