भजन में ताकत लगाओगे तो करूणावतार आएंगे

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 कल्याणपुरा में श्रीमद भागवत कथा के समापन पर गौसेवक संत कमलकिशोर ‘नागरजी’ के साथ हजारों श्रद्धालुओं की आंखों से बहा करूणा रस। 

अरविन्द, कोटा। जीवन में पाप दूर करने के लिए हमने साढ़े तीन करोड़ जप करने की बजाय उलटे काम हमने एक भी नहीं छोडे़। हम तीर्थ करने जाते हैं लेकिन अपने आसपास एक इंच जमीन पवित्र और निष्पाप नहीं छोड़ी।

हम गांव से हरिद्वार के लिए निकलते हैं लेकिन गाड़ी बीयर बार पर जाकर रूकती है। यह कलियुग की हवा है। इसे केवल भजन और भक्ति की ताकत से रोकना होगा, तभी करूणावतार आएंगे।

दिव्य गौसेवक संत पूज्य कमलकिशोर ‘नागरजी’ ने कल्याणपुरा में रविवार को श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम सोपान में कहा कि हमारे आचरण से तीर्थ की पवित्रता नष्ट हो रही है।

बद्रीनाथ धाम के अंतिम गांव में एक बोर्ड पर लिखा है- यहां देसी और अंग्रेजी शराब दोनो मिलती है। अब सोचिए कि बद्रीनाथ और कितने उपर जाएं। गंगा जल घर लाए लेकिन घर के पेयजल को शुद्ध नहीं छोड़ा। गंदगी फैलाकर फल, दूध, गाय सब अपवित्र कर दिए।

भजन को भोजन की तरह अपनाओ
धर्म-संस्कृति प्रदूषित होने पर उन्होंने कहा कि इसके लिए सभी दोषी नहीं हैं। हम दुर्योधन जैसी संगत छोडे़ं, ईश्वर से जुड़ें। कुंभकर्ण ब्राह्मण होकर 6 माह इसलिए सोए कि भाई दुष्ब्ट थे, खाना-पीना दूषित हो जाएगा, इसलिए वे निद्रा में रहे। सुदामा नियम-संयम के पक्के थे।

वे अन्नदोष खुद में नहीं चाहते थे, इसलिए भूखे रहे। उज्जैन के संदीपनी गुरू खेतों में बचा हुआ अन्न खाते थे। उन्होंने भजन को भोजन बना डाला। शरीर छूटा लेकिन उनके वचन जिंदा हैं। हमें ऐसी कथा सुनने को मिले जहां भक्ति रसायन हो।

अर्जुन-भीष्म के पहले बाण संदेश थे
उन्होने कहा कि गायें बेच दी, वो कटने चली गई। फिर गाड़ी, मकान, जेवर और घर के कबाड़ तक बेच दिए। धर्म में जो काम शमशान में वर्जित है, वे मकानों मे हो रहे हैं। जो काम मकानों में नहीं होने चाहिए, वे मंदिरों में हो रहे हैं।

इससे बचो। ईश्वर से प्रार्थना करो कि मेरे कर्मों के अनुसार दुख देना लेकिन क्रूर या नाराज होकर नहीं अपितु दया करके, मुस्कराकर देना।

जिसने दया करके दुख दिया, वहां दुख नहीं हुआ। अर्जुन सुबह का पहला बाण पितामह भीष्म के श्रीचरणों में मारते थे, वह चरणस्पर्श था। बदले में भीष्म अर्जुन के सिरे के पास पहला बाण देते थे, वह आशीर्वाद था। दोनों की नीति और नियति अच्छी थी।

….कोई हाथ आसरे का चाहिए
खचाखच भरे शांत पांडाल में पूज्य नागरजी ने कहा कि संसार में सुख देखो तो उसके साथ एक चीज और जोड़ लेना- ‘सब कुछ मिला पर अभी वो बाकी है।’ राम-लक्ष्मण वन में नहाने के बाद गुरूवर के पास जाकर नममस्तक हो जाते थे, वे सिर पर हाथ रखकर कहते-बेटा प्रसन्न रहो।

मंदिर में ठाकुर जी के चरण से चोटी तक दर्शन कर हाथ को निहारना। जो नित्य दर्शन करते हैं, वे अंत में उस हाथ के दर्शन भी करेंगे। मोर, मुकुट, हस्तकमल में श्रीविग्रह दिख जाए तो समझ लेना वही है। भजन ‘प्रभू तेरा द्वार न छूटे रे, छूट जाए संसार, तेरा द्वार न छूटे रे..’ सुनकर भक्तों की आंखें नम हो उठीं।

कथा में करूणा रस बरसाया
कथा के अंत में उन्होंने श्री विग्रह की साक्षात अनुभूति कराते हुए बताया कि हाथ में अंगूठा जीवन का आघार शिव है, जिससे आपका आधारकार्ड भी बना। जब भी मन मे करूणा आए तो आंखों से निकला जल इस आधार को चढ़ा देना। इसी भाव से करूणावतार आते हैं। इस जीव को शिव के पास रखो, क्यांकि ये संकट मोचक हैं।

कर्पूर गौरम करूणावतारम…पाठ करते हुए उन्होने कहा कि पेट और ठेठ ये दो चिंता हमें सताती है। जिसे पेट भरने की चिंता हो, पार्वती मां बनकर उसे भर देती है। जिसे ठेठ यानी अधोगति की चिंता रहती है, उसे महाकाल पिता बनकर दूर कर देते हैं।

सार सूत्र.-
– इत्र दिखता नहीं लेकिन खुशबू बिखेरता है। परमतत्व अदृश्य होकर कथाओं में सुगंध फैलाता है।
– जिसने आपको कंचन काया दी, रोज कम से कम 108 बार तो उसका नाम लो।
– ब्रह्मनाद कथा में शब्द बनकर आता है, सबकी दीक्षा हो जाती है।
– कलियुग की उम्र कम करने के लिए हमें कथा-भक्ति का प्रभाव बढ़ाना होगा।