हर दिन निकलने वाले गीले कचरे से बन रही 1.50 किलो बायोगैस
कोटा। अधिकतर होटल, मैस, रेस्टोरेंट से निकलने वाला खाद्य पदार्थों के कचरे का स्थायी समाधान कोटा के एक युवा होटल व्यवसायी ने तलाश लिया। इस गीले कचरे को फेंकने की बजाय वो इससे बायोगैस बना रहे है।
हर दिन निकलने वाले गीले कचरे से प्रतिदिन 1.50 किलो बायोगैस बन रही है। जिसका उपयोग वे अपने होटल में खाना बनाने में करते हैं। इस प्रयोग से हर माह ढाई कॉमर्शियल सिलेंडर के बराबर गैस की कम खरीदनी पड़ रही हैं और कचरे को फेंकने की समस्या से निजात भी मिल गया।
कोटा का ये पहला मामला है, जो कचरे की समस्या से इस तरह निजात पा रहे हैं। नयापुरा बस स्टैंड रोड स्थित इस होटल के संचालक मेहुल डागा ने ये सिस्टम अपनाया है। मैनेजमेंट की पढ़ाई के दौरान उन्होंने ये सिस्टम चेन्नई में देखा और फिर कोटा आकर अपने होटल में इसका उपयोग किया।
मेहुल बताते हैं कि उन्होंने अपने यहां 15 किलो क्षमता का प्लांट लगा रखा है। उनके होटल से हर दिन 12 से 15 किलो कचरा खाद्य पदार्थ निकलता है। इस कचरे को पानी में घोलकर टैंक नुमा इस प्लांट में डाला जाता है।
इसमें पहले से ही बैक्टेरिया डालकर रखे जाते हैं। इस कचरे से मिथेन बनती, जिससे गैस का चूल्हा जलता है। बस कुछ सावधानी रखनी पड़ी है कि इसमें नींबू नहीं डाला जाए और खाने के अलावा और कोई कचरा नहीं हो।
गीले कचरे से गैस बनाने के साथ ही खाद भी
मेहुल बताते हैं कि कोटा में निकलने वाले खाद्य पदार्थ के कचरे का उपयोग दो तरह से किया जा सकता है। एक तो गैस बनाई जा सकती है और दूसरी कंपोजिट खाद बनाई जा सकती है।
गैस प्लांट को छत पर भी लगाया जा सकता है। इसको लगाने में जो खर्च आता है, उसकी भरपाई 3 से 4 साल में हो जाती है और इसकी लाइफ 15 से 20 साल होती है।