मसूर का उत्पादन क्षेत्र सुधरकर 12.74 लाख हेक्टेयर पर पहुंचा

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नई दिल्ली। इस वर्ष 24 नवम्बर तक मसूर का उत्पादन क्षेत्र सुधरकर 12.74 लाख हेक्टेयर पर पहुंचा जो पिछले साल के क्षेत्रफल 12.03 लाख हेक्टेयर से करीब 6 प्रतिशत अधिक है।

शीर्ष उत्पादक प्रान्त- मध्य प्रदेश में मौसम सामान्य से ज्यादा शुष्क चल रहा है लेकिन पिछले 2-3 दिनों के दौरान वहां कुछ इलाकों में बारिश हुई है। दिसम्बर-जनवरी का समय फसल की प्रगति के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है इसलिए इस अवधि में मौसम का अनुकूल रहना आवश्यक है अन्यथा मसूर की औसत उपज दर, क्वालिटी एवं कुल पैदावार प्रभावित हो सकती है।

केन्द्रीय कृषि मंत्री ने 2022-23 के रबी सीजन में मसूर का घरेलू उत्पादन 15.80 लाख टन आंका है जो 2021-22 सीजन के उत्पादन से करीब 25 प्रतिशत ज्यादा है। लेकिन उद्योग-व्यापार क्षेत्र के उत्पादन अनुमान 13 लाख टन के आसपास रहा। देश में मसूर की औसत वार्षिक खपत बढ़कर 23-24 लाख टन पर पहुंच गई है जबकि प्रत्येक साल खपत में इजाफा हो रहा है।

केन्द्र सरकार द्वारा अपनी दो अधीनस्थ एजेंसियों- नैफेड तथा एनसीसीएफ के माध्यम से करीब 5 लाख टन स्वदेशी एवं आयातित मसूर (लाल) की खरीद की गई है। बफर स्टॉक बनाने के लिए टेंडर के जरिए इस मसूर की खरीद हुई। इसमें से एक लाख टन की आपूर्ति भी हो चुकी है। विश्लेषकों का मुताबिक सरकार अभी 2.00-2.50 लाख टन लाल मसूर की और खरीद कर सकती है।

नैफेड ने 24 नवम्बर को एक सूचना जारी करके आयातित मसूर के टेंडर के लिए आपूर्ति केन्द्रों की सूची में चेन्नई तथा तूतीकोरिन को फिर से शामिल कर लिया। उधर केन्द्र सरकार ने मसूर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6000 रुपए प्रति क्विंटल से 425 रुपए या करीब 7 प्रतिशत बढ़ाकर 6425 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है।

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-अक्टूबर 2023 के सात महीनों में देश के अंदर 8.15 लाख टन मसूर का आयात हुआ जो वित्त वर्ष 2022-23 की सम्पूर्ण अवधि (अप्रैल-मार्च) के कुल आयात 8,58,437 टन से कुछ कम है।

आगामी महीनों में 5 लाख टन अतिरिक्त मसूर का आयात हो सकता है। मसूर की मांग एवं खपत तेजी से बढ़ती जा रही है क्योंकि तुवर, उड़द एवं मूंग के साथ-साथ चना तथा मटर दाल का दाम भी काफी ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है।