सरकारी खरीद केंद्रों का कांटा, किसानों को दे गया करोड़ों का घाटा

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
राजस्थान के कोटा संभाग में विभिन्न कृषि उपजों के लिए सरकारी समर्थन मूल्य खरीद करने की केंद्र सरकार की घोषणा के बावजूद कृषि जिंसों की खरीद की पुख्ता व्यवस्था नहीं होने के कारण किसानों को कई करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है।

कृषि उपज मंडियों में रबी के कृषि सत्र की मुख्य उपज में शामिल चना, सरसों आदि का बाजार भाव कम होने के कारण राजनीतिक दलों और विभिन्न किसान संगठनों के राष्ट्रीय स्तर पर यह मसला उठाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने समर्थन मूल्य पर खरीद की घोषणा की थी, लेकिन किसान संगठनों का आरोप है कि सरकार ने समर्थन मूल्य पर किसानों से उपज के खरीद की तो घोषणा कर दी लेकिन खरीद के लिए समुचित व्यवस्था ही नहीं थी जिसके कारण न केवल किसानों को परेशानी उठानी पड़ी बल्कि भारी आर्थिक घाटा भी झेलना पड़ा।

असल में हुआ यह कि कोटा संभाग में सरकारी कांटों पर किसानों का ऑनलाइन पंजीयन तो कर लिया गया लेकिन इन सरकारी केन्द्रों पर खरीद की प्रक्रिया इतनी अधिक धीमी थी कि ज्यादातर किसानों का धैर्य जवाब दे गया क्योंकि ऐसे किसानों की संख्या बहुत अधिक थी जो किराए के परिवहन संसाधनों के जरिए अपनी कृषि जिन्सों को बेचने के लिए सरकारी कांटो तक पहुंचे थे।

लेकिन खरीद की प्रक्रिया की धीमी गति के कारण यह काम घंटों से दिनों में बदल गया और बीच-बीच में सरकारी खरीद केंद्रों पर बारदाना खत्म हो जाने के कारण किसानों को अपनी उपज को बेचने के लिए लंबा इंतजार करने की नौबत आई। जो किसान किराए की ट्रैक्टर-ट्रोलियों, मेटाडोर आदि के जरिए सरकारी कांटों पर अपनी उपज बेचने को आए थे,उनके लिए मालभाड़े के रूप में अतिरिक्त वित्तीय भार के साथ इंतजार करना मुश्किल हो गया।

इनमें से ज्यादा किसानों ने लंबी प्रतीक्षा कर अतिरिक्त मालभाड़ा भुगतने के बजाय आढतियों को ही ओने-पौने दामों में उपज बेचना मुनासिब समझा। इसका नतीजा यह निकला किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य नहीं मिल पाया। इस बारे में राष्ट्रीय किसान समन्वय समूह के राष्ट्रीय संयोजक दशरथ कुमार का आरोप है कि कोटा संभाग में सरकारी कांटों पर कृषि जिंसों की खरीद की धीमी रफ्तार और बार-बार बारदाना समाप्त हो जाने की समस्या के चलते कोटा संभाग के किसानों को उनकी उपजों की खरीद का सरकारी समर्थन मूल्य घोषित हो जाने के बावजूद लाभकारी दाम नहीं मिल पाने से काफी घाटा उठाना पड़ा है।

दशरथ कुमार का आरोप है कि सरकारी खरीद केंद्रों पर रबी की फसल की सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीदी की समुचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से ऑनलाइन पंजीयन करवाने के बावजूद कोटा संभाग के किसानों को कम से कम 15 लाख क्विंटल सरसों, 5 लाख क्विंटल चने को सरकारी उचित मूल्य पर बेचने के बजाय ओने-पौने दामों पर खुली नीलामी में आढतियों को बेचने को मजबूर होना पड़ा जिससे किसानों को लगभग 200 करोड रुपए का आर्थिक घाटा वहन करना पड़ रहा है।

दशरथ कुमार ने आरोप लगाए कि किसानों को हुये इस नुकसान के लिए केंद्र और राज्य सरकार तथा इनकी सरकारी मशीनरी की कृषि जिंसों में खरीद में बरती गई लापरवाही जिम्मेदार है। इसलिए इसकी भरपाई भी सरकार को ही करनी चाहिए और किसानों को क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान करना चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी मांग के समर्थन मूल्य पर किसानों से उनकी उपज की खरीद की समयबद्धता समाप्त करनी चाहिए और समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए स्थाई कांटे लगाए जाने चाहिए, ताकि किसानों में किसी भी तरह की अव्यवस्था के हालात नही बने।

दशरथ कुमार ने कहा कि पिछले दो सालों से रबी के मौसम में बेमौसम हो रही बरसात के कारण कोटा संभाग के किसानों की फसलों को व्यापक पैमाने पर नुकसान हुआ है और इसके बारे में समय-समय पर सर्वे भी करवाया गया, लेकिन सर्वे के बावजूद बड़ी संख्या में किसान ऐसे हैं जो सर्वे से वंचित रह गए हैं। राज्य और केंद्र सरकार को किसानों को सर्वे के अनुरूप बेमौसम हुई बरसात की वजह से हुए अपने नुकसान का आपदा राहत प्रबंधन कोष से मुआवजा देना चाहिए और किसानों को हुए भारी घाटे की भरपाई करनी चाहिए।