मुफ्त बिजली, फिर भी क्यों हो रहा है ठगा सा महसूस?

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बिजली कंपनियों ने फ्यूल सरचार्ज के रूप में उपभोक्ताओं पर जो भारी वित्तीय भार डाला है, उसका प्रतिकूल राजनीतिक असर अगले विधानसभा चुनाव में पड़ना तय है।

-कृष्ण बलदेव हाडा-
फ्यूल सरचार्ज के मसले पर आम आदमी से लेकर उद्योगपति-व्यापारी तक सभी के सब्र का पैमाना भरता नजर आ रहा है और विभिन्न राजनीतिक दलों सहित व्यापारिक एवं अन्य संगठन इस मसले को लेकर आंदोलन की राह पर हैं।

फ्यूल सरचार्ज के मसले पर एक बड़ा और गंभीर आरोप यह लगाया जा रहा है कि वित्त मंत्री के रूप में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से पिछले बजट सत्र में प्रदेश के आम उपभोक्ता को एक सौ यूनिट तक मुफ्त बिजली देने और उसके बाद अधिक विद्युत खपत पर सरकारी अनुदान देने की बड़ी घोषणा की गई थी, लेकिन जिस तरह से इस घोषणा के एक माह बाद ही प्रदेश की तीनों बिजली कंपनियों ने जिस मनमाने तरीके से एक के बाद एक दो बार फ्यूल सरचार्ज बढ़ा कर मुफ्त एवं अनुदानित बिजली देने की राज्य सरकार की घोषणा से आम उपभोक्ता को लाभ मिलने की उम्मीद पर पानी फेर दिया है।

साथ ही यह भी तय है कि मुख्यमंत्री की घोषणा तो इस चुनावी साल में राजनीतिक लाभ उठाने की घोषणा तक साबित होने वाली नहीं है, क्योंकि जिस तरह कि राज्य सरकार के मुफ्त बिजली देने की घोषणा के बाद अब बिजली कंपनियों ने फ्यूल सरचार्ज के रूप में आम उपभोक्ता से लेकर छोटे-मझोले व्यापारियों, लघु उद्योगपतियों पर भारी वित्तीय भार डाला है, उसका प्रतिकूल राजनीतिक असर अगले विधानसभा चुनाव में पड़ना तय है।

हालांकि काफी हद तक किसानों को सरकारी छूट से लाभ मिलने की उम्मीद है लेकिन आम शहरी उपभोक्ता इससे किसी लाभ से न केवल वंचित रह जाएंगे बल्कि उन पर तो मुफ्त और अनुदानित बिजली के उपभोग के बाद भी अतिरिक्त वित्तीय भार पड़ना तय है। इस तरफ उपभोक्ता अपने आप को ठगा सा महसूस करता है।

कोटा में फ्यूल सरचार्ज के मसले को लेकर गैर कांग्रेसी राजनीतिक दलों में नाराजगी के अलावा अन्य औद्योगिक, व्यापारिक एवं आर्थिक क्षेत्र से जुड़े संगठन उद्वेलित हैं और राजस्थान की बिजली कंपनियों की नीतियों के खिलाफ मोर्चाबंदी का फैसला कर चुके हैं।

कोटा के लघु उद्योगपतियों के प्रमुख संगठन दी एस एस आई एसोसिएशन के झंडे तले उद्योगपति एकजुट होकर न केवल आंदोलन करने की घोषणा कर चुके हैं बल्कि उनकी ओर से यह भी कहा गया है कि यदि राज्य सरकार ने बढ़ा हुआ फ्यूल सरचार्ज वापस नहीं लिया तो लघु उद्यमी बिजली का बिल नहीं अदा नहीं करेंगे।

क्योंकि जिस तरह से एकमुश्त बढ़कर बिजली का बिल आ रहा है, वह कई छोटे उद्यमियों की अदायगी की सीमा के दायरे के बाहर है। ऐसे में वे बिल कैसे अदा कर सकता।
कोटा के व्यापारियों का प्रमुख संगठन कोटा व्यापार महासंघ फ्यूल सरचार्ज के रूप में की गई भारी बढ़ोतरी के प्रति अपना कड़ा प्रतिवाद दर्ज करवा चुका है।

इन दोनों ही औद्योगिक-व्यापारिक संगठनों के फ्यूल सरचार्ज को वापस लेने की राज्य सरकार से मांग का ज्ञापन अधिकारियों को सौंपा जा चुका है। इसके अलावा कई राजनीतिक गैर राजनीतिक संगठन इस मनमानी खींचकर चार्ज के विरोध में सामने आए हैं।

केवल कोटा ही नहीं बल्कि प्रदेश स्तर पर फ्यूल सरचार्ज की मनमानी वृद्धि का विरोध का दौर शुरू होगा और निश्चित रूप से इसका कहीं न कहीं राजनीतिक स्तर पर प्रतिकूल असर कांग्रेस और उसकी प्रदेश सरकार के मुखिया अशोक गहलोत पर पड़ना तय है।

आम जनता आहत है क्योंकि एक तरफ महंगाई राहत शिविर लगाकर लोगों को यह सपने दिखाए जा रहे हैं कि केंद्र सरकार की गलत नीतियों के कारण हुई मूल्य वृद्धि के खिलाफ राज्य सरकार विभिन्न मदों में बढ़ी हुई महंगाई में राहत देने के उपाय कर रही है।

इसको लेकर दस बड़ी राहत देने की बात बनाई जा रही है लेकिन दूसरी ओर फ्यूल सरचार्ज बढ़ोतरी जैसे ‘बैक डोर’ तौर-तरीकों के जरिए आम जनता पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डाला जा रहा है।