ईआरसीपी के मार्ग पर खड़ी की एक ओर बाधा

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प्रधानमंत्री ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने को नहीं है तैयार

-कृष्ण बलदेव हाडा-
एक और जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजस्थान की दृष्टि से अति महत्वकांक्षी पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) को राजस्थान और उसके पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के बीच दो राज्यों का मसला बता कर इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने में न तो खुलकर आनाकानी कर रहे हैं और न ही इस मांग को मानने को तैयार हैं।

जबकि सच्चाई यह है कि मध्यप्रदेश तो पहले ही इस परियोजना से संबंधित दो नदियों पर बांध बनाकर न केवल जल संग्रहण के इंतजाम पहले ही से कर चुका है बल्कि अब तो वह इसके खिलाफ न्यायालय तक में चला गया है जबकि इसके विपरीत राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस परियोजना के बड़े स्वरूप को देखते हुए और इससे कई हजार किसान परिवारों को मिलने वाले लाभ को ध्यान में रखकर लगातार इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग कर रहे हैं।

ताकि परियोजना के लिए पर्याप्त आर्थिक संसाधन मिले और इसका काम जल्दी से जल्दी शुरू करें। क्योंकि इस परियोजना से राजस्थान के 13 जिलों के किसान सिंचाई और पेयजल की दृष्टि से लाभान्वित होने वाले हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक बार फिर से इस मसले को पुरजोर तरीके से उठाया है।

राजस्थान नहर जिसे बाद में इन्दिरा गाँधी नहर नाम दिया गया, के बाद प्रदेश की दृष्टि से यह सबसे बड़ी और महत्वाकाक्षी सिंचाई परियोजना उस समय बनी जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और खुद तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने न केवल पहल करते हुए बल्कि रुचि दिखाते हुए इसका समूचा खाका तैयार कर योजना मंजूर की थी।

यही नहीं, इस परियोजना का महत्व समझते हुए पिछले विधानसभा चुनाव के समय स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजमेर और जयपुर के ग्रामीण क्षेत्रों की बड़ी जनसभाओं में यह घोषणा की थी कि केंद्र सरकार इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देगी। लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद प्रधानमंत्री अपने वायदे को पूरा करने पर कायम नही रह सके।

आज तक भी जबकि विधानसभा चुनाव हुए करीब सवा 4 साल के लगभग का समय बीत चुका है, पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा तो दिया ही नहीं गया है। बल्कि हाल ही में प्रधानमंत्री अपनी अलवर यात्रा के दौरान यह कह गए कि यह परियोजना दो राज्यों यानी राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच की परियोजना है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट तो नहीं कहा लेकिन इतना संकेत जरूर दे दिया कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार के रहते तो वे इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने वाले नहीं हैं।

रहा सवाल मध्य प्रदेश का तो वह तो पहले ही जिन नदियों को जोड़कर यह परियोजना बनाई जाने वाली है। उसमें शामिल नदी पर अपने प्रदेश में मोहनपुरा-कुंडलिया बांध बना चुका है और अब वह इस नहर परियोजना के प्रस्तावित खाके के कुछ हिस्से पर आपत्तियों के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है।

उसने एक याचिका दायर की है जिसका मकसद अंततः इस परियोजना पर फ़िलहाल रोक लगाना है। जबकि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना पहले ही केंद्रीय जल आयोग की गाइडलाइन के अनुसार तय की गई है। उस समय इस योजना के स्वरूप पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं करवाई गई थी, लेकिन अब मध्यप्रदेश ने इस परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगा दी है।

यदि इस परियोजना का काम रुका तो न केवल राजस्थान के 13 जिले कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, करौली, अलवर, भरतपुर, दौसा और धौलपुर के लाखों किसान प्रभावित होंगे।

इस परियोजना से न केवल इन 13 जिलों की हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित कर वहां की कृषि उत्पादन क्षमता बढ़ाने और किसानों की दृष्टि से उनकी आर्थिक समृद्धि को मजबूत करने के लिए पानी मिलेगा, बल्कि इन सभी जिलों में भूमिगत जल स्तर के काफी गहरे चले जाने के कारण प्यासे रह रहे हजारों-लाखों लोगों के कंठ की प्यास बुझ सकेगी।

इससे राजस्थान की तो 40 प्रतिशत आबादी को पेयजल और 4.31 लाख हैक्टेयर जमीन की सिंचाई की सुविधा मिलेगी। इसके अलावा परियोजना से 4.31 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई का पानी मिलने सहित दिल्ली-मुबंई इंडस्ट्रियल कोरिडोर प्रोजेक्ट के तौर राजस्थान में औद्योगिक विकास के नए रास्ते खुल सकते हैं।

इसके अलावा मध्यप्रदेश के भी हजारों परिवार इस परियोजना के पूरे होने के बाद मिलने वाले लाभ से वंचित हो जाएंगे। वैसे भी यह परियोजना चम्बल और उसकी सहायक नदियों के व्यर्थ बह जाने वाले 19 हजार मिलियन क्यूबिक लीटर पानी के एक हिस्से को बचाने की कोशिश के तहत तैयार की गई है। क्योंकि इस परियोजना के पूर्ण होने के बाद इसे संचालित करने के लिए महज लगभग 3500 मिलियन क्यूबिक पानी की जरूरत होगी।

इससे कई हजार परिवार लाभान्वित होंगे, क्योंकि न केवल उनको पीने के लिए पानी मिलेगा। बल्कि लाखों हेक्टेयर जमीन में सिंचाई के लिए फ़सली सत्र में साल भर पर्याप्त पानी किसानों को उपलब्ध हो सकेगा जिससे किसानों की माली हालत सुधारने में मदद हो सकेगी।